ऐसे पड़े नाम
नगर जेठानी – पिछले सात दशकों से इनकी स्थापना कोष्टा समाज द्वारा बधैयापुरा स्थित कोष्टी मंदिर में की जा रही है। संभवत: यह शहर की पहली व एकमात्र ऐसी प्रतिमा है, जो समाज विशेष द्वारा स्थापित की जाती है। इनके पूजन करने कोष्टा समाज का हर परिवार मंदिर पहुंच रहा है। शहर से बाहर रहने वाले लोग विशेषतौर पर छुट्टी लेकर यहां आते हैं। जब माता विसर्जन चल समारोह में शामिल होती हैं, तब सकल कोष्टा समाज वहां मौजूद रहता है। इसी भव्यता और समाज संख्या को देखते हुए इन्हें जेठानी का नाम दिया गया है।
नगर सेठानियां – 150 सालों से अधिक समय से मां सुनरहाई और नुनहाई की स्थापना हो रही है। इनकी पहचान भक्तों द्वारा असल हीरे, मोती, सोना चांदी से किया जाने वाला शृंगार है। मां सुनरहाई व नुनहाई आज की तारीख में करोड़ों रुपयों के हीरे मोती से सुसज्जित होती हैं। जिनमें दर्शनों को जनसैलाब उमड़ पड़ता है। यही वजह है कि इन्हें सेठानियां कहा जाता है।
नगर महारानी- नगर महारानी के बिना शहर दशहरे की कल्पना व भव्यता का बखान नहीं किया जा सकता। ऐसे तो बहुत की महाकाली की प्रतिमाएं शहर में जगह-जगह स्थापित की जाती हैं, लेकिन निरंग काली या वृहत महाकाली के दर्शन किए बिना कोई भक्त नहीं रहता। ये पूरे दशहरा चल समारोह की शान कही जाती हैं, इनके गुजरते ही दशहरे की भीड़ खत्म होने लगती है। इसलिए गढ़ा फाटक में विराजमान होने वाली वृहत महाकाली को नगर महारानी के नाम से पुकारा जाता है।