ईद ए मिलादुन्नबी इस साल कोरोना संक्रमण के चलते धूमधाम से आयोजन करने की इजाजत नहीं रही। लेकिन घरों और मस्जिदों में पैगम्बर को याद किया गया।
ईद ए मिलदुन्नबी के मौके पर पैगंबर साहब का जन्म दिवस मनाने को खास इंतजाम किया गया। जलसा-जुलूस का आयोजन तो पिछले सालों की तरह नहीं हुआ पर घरों व मस्जिदों को सजाया गया। कुरआन की तिलावत और इबादत भी की गई। गरीबों को दान भी दिए गए।
ईद ए मिलदुन्नबी इस्लाम के इतिहास का सबसे अहम दिन माना जाता है। पैगम्बर मोहम्मद साहब का जन्म इस तीसरे महीने के 12वें दिन हुआ था। इस दिन को मनाने की शुरुआत मिस्र से 11वीं सदी में हुई थी। फातिमिद वंश के सुल्तानों ने इस ईद को मनाना शुरू किया। पैगम्बर के इस दुनिया से जाने के चार सदियों बाद इसे त्योहार की तरह मनाया जाने लगा। इस मौके पर लोग रात भर जागते हैं और मस्जिदों में पैगम्बर द्वारा दी गई कुरआन और दीन की तालीम का जिक्र किया जाता है। इस दिन मस्जिदों में तकरीर कर पैगम्बर के बताए गए रास्ते और उनके आदर्शों पर चलने की सलाह दी जाती है।
ईद ए मिलदुन्नबी के साथ-साथ इस दिन को बारावफात भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन के साथ वफात (मौत) भी हुई थी। दुनिया को अलविदा कहने से पहले पैगम्बर मोहम्मद बारह दिन तक बीमार रहे। 12वें दिन उन्होंने इस दुनिया को जाहिरी तौर पर अलविदा कह दिया था। इत्तिफाक से उनका जन्म भी आज ही के दिन हुआ था। ऐसे में इस दिन को बारावफात के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन इस दिन मुसलमान ग़म मनाने की बजाए आज के दिन जश्न मनाते हैं।
कलेक्टर कर्मवीर शर्मा के निर्देश पर पुलिस व प्रशासन के अफसरों ने समाज का प्रतिनिधियों व मस्जिद कमेटी के सदस्यों से चर्चा कर सभी को शासन की गाईड लाईन से अवगत कराया। अशांतिप्रिय तत्वों पर खास निगाह रखी।
ईदमिलादुन्नवी के मद्देनजर कलेक्टर एवं पुलिस अधीक्षक जबलपुर के निर्देश पर पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी पूरी तरह से मुस्तैद रहे। कोरोना महामारी के मद्देनजर शासन स्तर से जारी गाइड लाइन का पालन कराने में तनिक भी कोताही नहीं बरती गई।