फिक्स चार्ज बचता, तो कम होती कीमत रिटायर्ड अतिक्ति मुख्य अभियंता राजेन्द्र अग्रवाल ने बताया कि विद्युत उत्पादन कंपनियों से किए गए करार रेट बढऩे का एक बड़ा कारण है। इन उत्पादन केन्द्रों से बिजली ली जाए या नहीं, इन्हें फिक्स चार्ज के रूप में तीन सौ करोड़ रुपए देने पड़ते हैं। यदि बिजली कंपनियां यह फिक्स चार्ज बचातीं, तो टैरिफ बढ़ाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। क्योंकि दिल्ली और छत्तीसगढ़ उत्पादन यूनिटों को फिक्स चार्ज नहीं दे रहा है, इसलिए वहां बिजली टैरिफ कम है।
300 यूनिट पर तीन हजार का झटका जानकारी के अनुसार यदि प्रदेश के उपभोक्ता तीन सौ यूनिट से अधिक की बिजली की खपत करता है। तो प्रतिमाह उसे तीन हजार से 3100 रुपए तक बिजली कंपनियों को चुकाने पड़ेंगें। जबकि छत्तीसगढ़ में 300 यूनिट तक उपयोग करने पर 1947 रुपए, दिल्ली में 2137 रुपए और गुजरात में 1930 रुपए अधिक चुकाने पड़ते हैं, जो प्रदेश में सर्वाधिक है।
आंकड़ो में भी खेल बिजली में पांच से सात प्रतिशत नहीं बल्की साढ़े नौ प्रतिशत की वृद्धि की गई है। क्योंकि फिक्स चार्ज में 15 रुपए प्रतिमाह बढ़ाया गया है। यदि इसे भी जोड़ा जाए, तो पांच प्रतिशत की वृद्धि साढ़े नौ प्रतिशत तक पहुंच जाती है। इसके चलते आम घरेलू उपभोक्ता पर साढ़े तीन सौ रुपए प्रतिमाह का अतिरिक्त भार पड़ेगा।
सरप्लस, फिर भी महंगी प्रदेश में सरप्लस बिजली है। इसके बावजूद बिजली के रेट बढ़ाए जाना उचित नहीं है। उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब और पश्चिम बंगाल में बिजली की बैंकिंग की जाती है। लेकिन जब यह बिजली वापस ली जाती है, तो सवा रूपए प्रतियूनिट का खर्चा आता है।
किया जाएगा विरोध इधर आम नागरिक मित्र फाउंडेशन के डॉ.पीजी नाजपांडे, रजत भार्गव, अनिल पचौरी, एमए खान समेत अन्य पदाधिकारियों की एक बैठक आयोजित की गई। जिसमें नए टैरिफ के विरोध की रणनीति तैयार की गई।