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गजरथ फेरी में पुण्य अर्जन को उमड़ा शहर, भगवान आदिनाथ की प्रतिमा पर पुष्प वर्षा

locationजबलपुरPublished: Feb 24, 2019 01:30:37 am

Submitted by:

praveen chaturvedi

अंतिम दिन भगवान आदिनाथ के मोक्ष कल्याणक में हुई धर्म प्रभावना

गजरथ फेरी में पुण्य अर्जन को उमड़ा शहर, भगवान आदिनाथ की प्रतिमा पर पुष्प वर्षा

gajrath mahotsav

जबलपुर। पिसनहारी मढि़या तीर्थ के समीप आयोजित गजरथ महोत्सव के सातवें और अंतिम दिन गजरथ फेरी निकाली गई। इसमें पुण्य अर्जन और धर्म प्रभावना के दिव्य दर्शन पाने के लिए संस्कारधानी उमड़ पड़ी। भगवान आदिनाथ की प्रतिमा के साथ सौधर्म इंद्र एेरावत स्वरूप श्वेत हाथी पर विराजमान हुए तो मुनिगण, आर्यिका माताएं, 1008 जोड़े इंद्र-इंद्राणियों के साथ सकल दिगम्बर जैन समाज के हजारों श्रावक गजरथ फेरी में शामिल हुए। दोपहर 2 बजे गजरथ पथ पर भगवान के पंच रथ आगे बढ़े। उनके पीछे जैन समाज के लोग नंगे पांव चल रहे थे।

पंचकल्याणक प्रतिष्ठा गजरथ महोत्सव में कैलाश पर्वत को पंचरंगे परचम और गुब्बारों से सजाया गया था। रविवार सुबह 7.35 बजे भगवान आदिनाथ का मोक्ष कल्याणक शुरू हुआ। मंत्रोच्चार के बीच पात्र शुद्धि, अभिषेक, शांतिधारा क्रियाएं हुईं। ब्रह्मचारी विनय भैया ने भगवान के मोक्ष की घोषणा की तो वहां मौजूद लोग खुशी के भाव से नृत्य करने लगे। भगवान के नख, केश, पिच्छी, कमंडल, काजल की डिबिया, आभूषण, झारी, सलाई, बाजूबंद की सौभाग्य प्राप्ति के दौरान भक्ति के स्वर और चेहरे पर श्रद्धा भाव नजर आ रहा था।

बही भक्ति की बयार
मुनि योग सागर ससंघ के सान्निध्य में गजरथ फेरी शुरू हुई। गजपथ के किनारे कड़ी धूप में पुरुष-महिलाएं और बच्चे दर्शन के लिए प्रतीक्षारत रहे। श्री वीर जैन सेवा दल के युवा, प्रतिभा स्थली की कन्याएं और शिवनगरी की मातृ शक्ति बैंड की मधुर धुन से महोत्सव स्थल पर भक्ति की बयार बहा दी। गजरथ फेरी में शामिल रथों की शुद्धि ब्रह्मचारी त्रिलोक जैन और नरेश भैया ने की। सौधर्म इंद्र, माता-पिता, कुबेर सहित सभी इंद्र-इंद्राणी रथों से मोतियों की बरसात कर रहे थे। इस दौरान ब्रह्मचारी जिनेश भैया, नरेश भैया, त्रिलोक जैन, अशोक जैन, आनंद सिंघई, सुरेंद्र जैन पहलवान, गौरव जैन, नितिन बेंटिया, गीतेश जैन शामिल रहे।

बंधन का एहसास खोलता है मुक्ति के द्वार
प्रवचन में मुनिवरों ने कहा, बंधन का एहसास ही मुक्ति के द्वार खोलता है। हम रातभर अपनी इच्छा से कमरे में बंद रह सकते हैं। जब हमें रात में उठना पड़े और पता चले कि दरवाजा बाहर से बंद है, तब एक क्षण भी शांत नहीं रह सकते। दरवाजा खोलने के लिए हरसंभव प्रयत्न करते हैं। इसी प्रकार जिस साधक को यह एहसास होता है कि उसकी आत्मा कर्म के बंधन से बंधी है अर्थात् जब बंधन का एहसास होता है, तभी वह मुक्ति के लिए छटपटाता है। मुनिवरों ने आगे कहा, जैनेश्वरी दीक्षा से साधक पाप के मूल कारणों से मुक्त हो जाता है। वह जैसे-जैसे साधना की गहराई में उतरता है, वैसे-वैसे उसकी आत्मा का सौंदर्य निखरने लगता है और पर से मुक्ति होने लगती है।

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