नेत्रदान पखवाड़ा: उपचार और प्रत्यारोपण में लेटलतीफ,
90 प्रतिशत पीडि़तों की जिंदगी में अंधेरा,
25 की पुतली हो रही खराब,
नेत्रदान में कमी से 1 मरीज को मिल रही ज्योति,
कार्निया में आने लगती है सफेदी
नेत्र रोग विशेषज्ञों के अनुसार काली पुतली में संक्रमण के शिकार मरीजों में शहरी के मुकाबले ग्रामीण ज्यादा है। खेतीहर मजदूर सहित अन्य श्रमिकों की चोट लगने के कारण कार्निया में सफेदी आने लगती है। आंख में गलत एवं ज्यादा मात्रा में ड्रॉप(दवा) डालने और बच्चों को आंख में लगने वाली चोट की अनदेखी से अल्सर पनपने का अंदेशा रहता है। इम्यूनिट कम होने और संक्रामक बीमारियों के प्रभाव से भी काली पुतली को नुकसान पहुंचता है। कार्निया में सफेदी के कारण दिखना बंद हो जाता है। इनकी रोशनी ऑपरेशन के जरिए मृत व्यक्ति द्वारा दान की गई आंख से स्वस्थ्य काली पुतली को निकालकर पीडि़त की आंखों की काली पुतली की जगह पर प्रत्यारोपित करने से लौट सकती है।
मौत के बाद 5-6 घंटे तक स्वस्थ्य रहती हैं आंखें
मृत्यु के बाद नेत्रदान के इच्छुक मेडिकल कॉलेज के आई बैंक में अपना पंजीयन करा सकते हैं। मृत्यु होने पर संबंधी या परिचित को कॉलेज या आई बैंक को सूचित करना होता है। उसके बाद डॉक्टर्स की टीम मृत व्यक्ति के घर जाती है। महज 15-20 मिनट की प्रक्रिया में कार्निया निकाल लिया जाता है। चिकित्सकों के अनुसार मृत्यु के बाद 5-6 घंटे तक आंखें स्वस्थ रहती हैं। आंख को आई बैंक में सुरक्षित कर लिया जाता है। जरूरत के अनुसार पीडि़त में प्रत्यारोपण किया जाता है।
ओपीडी में जांच में प्रत्येक माह औसतन 25 मरीज काली पुतली के संक्रमण से पीडि़त मिल रहे है। काली पुतली के संक्रमण से पीडि़त मरीज को प्रत्यारोपित आंखें लगाने से ऐसे लोग तुरंत देखने लगते हैं। अभी तक 26 मरीजों की आंखों में काली पुतली का सफल प्रत्यारोपण किया जा चुका है। जागरुकता के अभाव में नेत्रदान करने वालों की संख्या कम है। यदि नेत्रदान करने वाले आगे तो मृत्यु उपरांत उनकी आंखों की काली पुतली का पीडि़तों में प्रत्यारोपण करके उनकी जिंदगी में नई रोशनी भरी जा सकती है।
– डॉ. परवेज अहमद सिद्दकी, नेत्र रोग विशेषज्ञ, मेडिकल कॉलेज