होती थी माता की पूजा
मंदिर से जुड़े मनोज सेन ने बताया कि वर्तमान बगलामुखी मठ जिस स्थान पर स्थित है, वहां पहले दंडी स्वामी क्रोधानन्द माता बगलामुखी की पूजा करते थे। वर्ष 2000 में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने इस मंदिर का निर्माण करवाकर माता की प्रतिमा प्रतिष्ठा कराई। पहले यह मंदिर छोटा था। सामने की बाउंड्री से लगी दुकानें हटने के बाद इसे भव्य रूप दिया गया। परिसर में संस्कृत विद्यालय भी संचालित है।
9 ग्रह, दस विद्या व महिषासुर भी
मंदिर के मुख्य पुजारी ब्रह्मचारी चैतन्यानन्द ने बताया कि परिसर में माता बगलामुखी के साथ नौ ग्रह, दस महाविद्या सहित कई अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाएं विराजमान हैं। यह शहर का इकलौता शक्तिपीठ है जहां राक्षस महिसासुर का वध करते हुए माता की प्रतिमा भी है। साल भर यहां अखंड ज्योति कलश जलता है। पूरे वर्ष यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। दोनों नवरात्रि पर भी मंदिर में ज्योति कलश प्रज्ज्वलित किए जाते हैं। इस दौरान माता का विशेष पूजन किया जाता है, विशेष भोग लगते हैं। सप्तमी की कालरात्रि पूजा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं।
महिसासुर को मारने बगलामुखी की उत्पत्ति
ब्रह्मचारी चैतन्यानन्द ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार महिसासुर दानव के अत्याचार से त्रस्त होकर देवी देवताओं ने माता राजराजेश्वरी की आराधना की। तब उन्होंने देवी बगलामुखी की उत्पत्ति की, जो दानव का संहार कर महिषासुर मर्दिनी कहलाईं। उन्होंने बताया कि कोरोनाकाल के दौरान मंदिर और देवी बगलामुखी के प्रति भक्तों की आस्था और बलवती हुई है। दर्शनार्थियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।