प्रदेश में औषधीय खेती का रकबा कम हो रहा है। औषधीय पौधों की खेती को लेकर किसानों की मुश्किल का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अच्छी किस्म की मिट्टी के चयन के कारण प्रदेश में उत्पादकता बढ़ी है। लेकिन, बाजार नहीं मिलने से उन्हें फायदा नहीं हो रहा है। उद्यानिकी विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 2015-16 में प्रदेश में औषधीय खेती का रकबा 56 हजार हेक्टेयर से अधिक था, जो 2019-20 में घटकर 37 हजार हेक्टेयर पर आ गया। इस दौरान बेहतर उत्पादकता देखने को मिली और औषधीय उपज का उत्पादन 95 हजार मीट्रिक टन तक पहुंच गया।

फसल बेचने नीमच, मंदसौर के फेरे
किसानों के अनुसार वे औषधीय पौधों की खेती करना चाहते हैं, लेकिन बीज कहां से खरीदें, फसल का उपचार कैसे करें और उत्पादन के बाद बाजार में कैसे बेचें, यह तय नहीं हो पा रहा है। अश्वगंधा की खेती करने वाले किसान दुर्गेश का कहना है कि स्थानीय स्तर पर कोई 10 किलो तो कोई 50 किलो अश्वगंधा खरीद रहा है। ऐसे में उन्हें औषधीय उपज बेचने मंदसौर और नीमच जाना पड़ता है। वहां भी उचित दाम नहीं मिलता। विशेषज्ञों के अनुसार जबलपुर में ही एक हजार एकड़ में अश्वगंधा, सतावर, सर्पगंधा, सफेद मूसली और कलौंजी की खेती हो रही है।
महाकोशल अंचल में किसान अपने स्तर पर औषधीय खेती के लिए आगे आ रहे हैं। उनके सामने सबसे बड़ी समस्या बाजार की है। सात सौ किलोमीटर दूर उपज लेकर जाना सम्भव नहीं है। किसानों को प्रोत्साहित करने के साथ जबलपुर में खरीदी की व्यवस्था होनी चाहिए।
सुरेश मिश्रा, सेवानिवृत्त अधिकारी, उद्यानिकी विभाग
किसानों को औषधीय खेती के फायदे बताने के साथ प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। 2 से 3 रुपए में उन्नत पौधे उपलब्ध कराए जाते हैं। हाल ही में कुछ किसानों ने बिचौलियों से 12-15 रुपए की दर से पौधे खरीदे। उनकी गुणवत्ता ठीक नहीं थी। किसानों को मार्केट प्रदान करने का प्रयास किया जाता है। -
डॉ. ज्ञानेंद्र तिवारी, प्रभारी, औषधीय हर्बल गार्डन, जेएनकेविवि