जबलपुर

आमजन का है दरख्तों से दिली रिश्ता, लेकिन सरकारी सिस्टम कुल्हाड़ी चलाने से बाज नहीं आता

शहर में कई पेड़ों को शिद्दत से बचाया गया, उधर नगर निगम की सीमा में पांच साल में काटे गए पांच हजार पेड़

जबलपुरMay 16, 2019 / 02:00 am

shyam bihari

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सड़क निर्माण के लिए काटे सबसे ज्यादा पेड़
-05 हजार पेड़ पांच साल में नगर निगम सीमा में काटे
-1500 पेड़ कटंगा ग्वारीघाट मार्ग में काटे
-1400 पेड़ सिविल लाइन क्षेत्र में काटे
-900 पेड़ छोटी लाइन फाटक मार्ग में काटे
-500 पेड़ तिलवाराघाट मार्ग पर काटे
-800 पेड़ दमोहनाका से पाटन मार्ग में काटे
-600 पेड़ सगड़ा से धुआंधार मार्ग पर काटे
-40 पेड़ मदनमहल स्टेशन लिंक रोड पर काटे
-06 फीसदी घटी दस साल में हरियाली
-16 लाख से ज्यादा की आबादी वाले शहर में महज सवा तीन सौ उद्यान
-05 हजार से ज्यादा की आबादी पर एक उद्यान
हाईवे पर भी कटे पेड़
-55 किमी जिले में एनएच 12 की सीमा
-38 गांव जिले के शामिल
-4900 से ज्यादा पेड़ काटे गए सड़क के दोनों ओर
-06 हजार कुल पेड़ काटे जाने हैं एनएच जिले की सीमा में
-07 साल पहले प्रोजेक्ट की हुई थी शुरुआत
-100 से 150 साल तक पुराने पेड़ काटे गए
कटे पेड़ों की भरपायी के लिए पौधरोपण नहीं
-10:1 होना चाहिए पौधरोपण का अनुपात
-40 डिग्री से ज्यादा तापमान में सड़क किनारे झुलस रहे राहगीर
जबलपुर। ‘आंगन में खड़ा सूर्य की तपिश सह रहा, चौबीस घंटे छांव और प्राण वायु दे रहा। क्यूं उस पर कोई कुल्हाड़ी चलाए, क्या हक जो पक्षियों के घोसले मिटाए। हर इक दरख्त मुझे प्राणों से प्यारा है। फल भले ही न दे पेड़ बूढ़ा होकर भी छांव जरूर देगा।Ó इसी भाव के साथ शहर के कई परिवारों ने पेड़ों को सहेजकर रखा है। उनके बचाए बरसों पुराने पेड़ सभी को शीतल छांव दे रहे हैं। ऐसे कई शख्स संदेश दे रहे हैं कि हरियाली का सिमटता दायरा और लगातार बढ़ रहा तापमान खतरे का अलार्म बजा रहा है, पेड़ों को बचा लो।
केस-1
नेपियर टाउन निवासी नरेन्द्र कुमार ने पांच साल पहले भवन निर्माण किया। इस दौरान लोगों ने कहा कि प्लॉट में लगा बेल का पेड़ काट दो। लेकिन उन्होंने कहा मैं हर हाल में पेड़ बचाऊं गा। उन्होंने भवन का निर्माण कुछ इस तरह से कराया कि 17 साल पुराना बेल का पेड़ सुरक्षित बच गया। पेड़ बचाने के लिए उन्होंने कांक्रीट की जगह लोहे की सीढिय़ां बनवाईं।
केस-2
पर्यटन तिराहा के समीप सड़क चौड़ीकरण के लिए तीन साल पहले बाइक शोरूम के छोर पर बने दो भवन तोड़े गए। मौके पर लगे आम के पेड़ पर भी कुल्हाड़ी चलाने की तैयारी कर ली गई। जिसके बाद बड़ी संख्या में शहरवासी पेड़ को बचाने आगे आए। आखिरकार पेड़ के चारों ओर कांक्रीटेड रिंग बनाकर उसे सुरक्षित किया गया। आज ये ही पेड़ भरी गर्मी में लोगों को छांव दे रहा है।
केस-3
कलेक्ट्रेट में कलेक्टर का वाहन रखने के स्थान पर 15 साल पहले पोर्च निर्माण का निर्णय लिया गया। इस दौरान कई प्रशासनिक अधिकारियों ने कहा कि पेड़ काटने पड़ेंगे। लेकिन जिन कर्मचारियों ने पेड़ लगाए थे वे उन्हें बचाने के लिए आगे आए। सभी ने कहा कि बच्चों की तरह पेड़ों की देखभाल की है उन्हें न काटा जाए। जिन पेड़ों को कटने से बचाया आज वे ही पेड़ सभी को छांव दे रहे हैं।
केस-4
गढ़ा फाटक स्थित मजार में मजकुं ड का पेड़ लगा है। लगभग तीन सौ साल पुराना पेड़ है। लगभग दस साल पहले मजार में लगे इस पेड़ को कुछ लोग काट रहे थे। योगाचार्य शिव शंकर पटैल व स्थानीयजन आगे आए। वे भावुक हो गए। आंखों में आंसू आ गए। सभी को समझाया कि ये दुर्लभतम औषधीय पेड़ है इसे न काटें। सभी ने उनकी बात सुनी और पेड़ को बचाया जा सका है। शहरभर के लोग सिर दर्द के इलाज के लिए इस पेड़ के फू ल पीसकर लगाते हैं।
पांच साल में पांच हजार पेड़ काटे
शहरी सीमा में पिछले पांच साल में पांच हजार पेड़ों का कत्लेआम कर दिया गया। सड़क चौड़ीकरण के लिए शहरी सीमा में तो पेड़ काटे ही गए, नेशनल हाइवे किनारे लगे पेड़ों पर भी जमकर कु ल्हाड़ी चलाई गई। सड़क चौड़ीकरण से लेकर भवन निर्माण के लिए पेड़ों में जमकर आरा चल रहा है, हरियाली का दायरा लगातार सिमट रहा है। बरसों पुराने पेड़ों का कत्लेआम जारी है। शहर की कई मुख्य सड़कों से लेकर हाईवे के किनारे दूर तक छांव का नामोनिशान नहीं रह गया है। जिसके कारण 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान में राहगीरों का बुरा हाल है।
पेड़ों की भरपायी के नाम पर खानापूर्ति
काटे गए पेड़ों की भरपायी के नाम पर महज खानापूर्ति होती रही है। शहरी सीमा से लेकर हाइवे किनारे भी ग्रीन बेल्ट घटता जा रहा है। सड़क निर्माण के दौरान दोनों ओर पौधरोपण के लिए जगह ही नहीं छोड़ी जा रही है। घर बनाते वक्त भी लोग पूरी जमीन पर निर्माण कर ले रहे हैं।
सड़क चौड़ीकरण के लिए जितने पेड़ काटे जाते हैं उनके मुकाबले दस गुना पौधे लगाने का प्रावधान है। अगर दस पौधे लगाते हैं तो विकसित होकर उनमें से केवल एक पौधा ही बच पाता है। इसीलिए पौधरोपण में विकास के इस सिद्धांत का पालन करना होता है, लेकिन सड़कों के किनारे पौधरोपण का एक्शन प्लान भी तैयार न होना हैरान करने वाला है।
एबी मिश्रा, पर्यावरणविद्

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