वत्स द्वादशी कथा एवं पूजन- चाकू से काटकर कुछ भी नहीं पकाएं
वत्स द्वादशी उत्साह से मनाई जाती है। इस दिन माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र एवं सुख-सौभाग्य की कामना करती हैं। बछड़े वाली गाय की पूजा कर कथा सुनी जाती है फिर बच्चों को नेग तथा श्रीफल का प्रसाद देती हैं। इस दिन घरों में चाकू से काटकर कुछ भी नहीं पकाया जाता है। विशेष रूप से चने, मूंग, कढ़ी आदि पकवान बनाए जाते हैं तथा व्रत में इन्हीं का भोग लगाया जाता है। इस दिन गायों तथा उनके बछड़ों की सेवा की जाती है। सुबह नित्यकर्म से निवृत्त होकर गाय तथा बछड़े का पूजन किया जाता है। यदि घर के आस-पास भी गाय और बछडा़ नहीं मिले तब गीली मिट्टी से गाय तथा बछड़े को बनाएं और उनकी पूजा करें। गाय के दूध से बनी खाद्य वस्तुओं का उपयोग नहीं किया जाता है।
पूजा विधि- पंडित दीपक दीक्षित के अनुसार सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इस दिन दूध देने वाली गाय को बछड़े सहित स्नान कराते हैं। फिर उन दोनों को नया वस्त्र ओढ़ाया जाता है। दोनों के गले में फूलों की माला पहनाते हंै। दोनों के माथे पर चंदन का तिलक करते हंै। सींगों को मढ़ा जाता है। तांबे के पात्र में सुगंध, अक्षत, तिल, जल तथा फूलों को मिलाकर गौ का प्रक्षालन करना चाहिए। गाय को उड़द से बने भोज्य पदार्थ खिलाने चाहिए। गाय माता का पूजन करने के बाद वत्स द्वादशी की कथा सुनी जाती है। उसके बाद भोजन ग्रहण किया जाता है।
वत्स द्वादशी का यह व्रत संतान प्राप्ति एवं उसके सुखी जीवन की कामना के लिए किया जाने वाला व्रत है। यह व्रत विशेष रूप से स्त्रियों का पर्व होता है। इस दिन अंकुरित मोठ, मूंग तथा चने आदि को भोजन में उपयोग किया जाता है और प्रसाद के रूप में इन्हें ही चढ़ाया जाता है। इस दिन द्विदलीय अन्न का प्रयोग किया जाता है।