महंगी होती शिक्षा से हर वर्ग परेशान है। चाहे वह स्कूली शिक्षा का मामला हो या फिर उच्च शिक्षा का। आर्कषक बिल्डिंगे खड़ी तो कर ली जाती है लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता सामान्य स्तर तक की नहीं होती। सरकार इस दिशा में गंभीर नहीं है। जिसका लाभ शिक्षा माफिया उठा रहे हैं। सरकार को चाहिए कि वह स्कूलों की महंगी होती जा रही शिक्षण व्यवस्था, मनमानियों पर लगाम लगाए। शासन स्तर पर ही एेसे स्कूल और कॉलेजों में आवश्यक शिक्षण सुविधाएं एवं स्टाफ उपलब्ध कराकर व्यवस्थाएं की जाएं ताकि आम मध्यमवर्गीय वर्ग निजी संस्थानों के प्रति रुख न कर सके। कुछ एेसे ही विचार ‘पत्रिका मुद्दा’ के माध्यम से अभिभावक, छात्रों ने व्यक्त किए।
मेहनत हम करते हैं, नाम स्कूल का
अभिभावक ज्योति गठेरे ने कहा कि प्राइवेट स्कूल में महंगी फीस देकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं लेकिन बच्चे पूरी तरह प्रीपेयर नहीं हो रहे हैं। हमें बच्चों के पीछे लगना पड़ता है, उन्हें बार-बार पढ़ाना पड़ता है। अभिभावकों को यह बात समझनी चाहिए। इसका साफ मतलब है कि स्कूल फीस तो तगड़ी ले रहे हैं लेकिन शिक्षण कार्य सामान्य स्तर तक का नहीं दे रहे हैं। स्कूल सिर्फ बिल्डिंग तानकर स्टेण्डर्ड बना लेते हैं लेकिन बच्चों पर फोकस नहीं करते। हम एक्स्ट्रा एफर्ट करते हैं लेकिन नाम स्कूलों का होता है। आज बच्चा सिर्फ वर्डन झेल रहा है। सरकार को एेसी स्कीम बनाना चाहिए कि सरकारी स्कूलों का स्टेण्डर्ड बढे़ ताकि प्राइवेट स्कूलों का बिजिनेस कम हो। एक समय सरकारी स्कूल में काम्पटीशन होता था।
कॉलेजों में नहीं लगती कक्षाएं
शिक्षक सुरेश नामदेव कहते हैं कि कॉलेजों में कक्षाएं नहीं लगती, योग्य शिक्षक नहीं है। छात्रों की पढ़ाई अब कोचिंग संस्थानों पर टिकी है। जिसके मां-बाप पर भी आर्थिक भार पड़ रहा है। कोचिंग संस्थानों में भी शिक्षक क्वालीफाइड नहीं है जिससे बच्चे कुछ हासिल नहीं कर पा रहे हैं। इस दिशा में सरकार को सोचने की जरूरत है। छात्रा कुमकुम, अमित जायसवाल, पवन राजपूत ने शिक्षा के स्तर में सुधार और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए विशेष प्रयास किए जाने की आवश्यकता जताई।
बिना डोनेशन के एडमिशन नहीं
अभिभावक अब्दल लतीफ की तल्ख होते हुए कहा कि हम मध्यम परिवार से हैं। किसी भी बड़े स्कूल में बिना डोनेशन के एडमिशन नही होता। साल भर एक्टीविटी के नाम पैसे लिए जाते हैं जिससे अभिभावक की कमर टूट जाती है। सरकार को प्राइवेट स्कूलों के लिए कड़े नियम लागू करना चाहिए साथ ही सरकारी स्कूलों के प्रति रुझान बढ़ाए जाए ताकि अभिभावक आकर्षित हो सके। उच्च शिक्षा में नीट, पीइटी कराने के लिए 5 लाख सालाना फीस है। आम आदमी फीस को देखकर ही घबरा जाता है।
बदत्तर हो गई व्यवस्थाएं
ब्रजेश श्रीवास ने नाराजगी व्यक्त की कि कॉलेजों की व्यवस्थाएं बदत्तर हो गई है। कॉलेजों को केवल फीस से मतलब है चाहे छात्र पढऩे आए या न आए। जब जाना हो जाओ नहीं केवल फीस बस भर दो। इस दिशा में सुधार की आवश्यकता है। संतोष नामदेव ने कहा कि शिक्षा का परिवेश महंगा हो गया है। सभी में दिखावा और प्रतिस्पर्धा चल रही है। स्कूल कॉलेजों में प्रवेश के नाम पर 30 हजार से 70 हजार डोनेशन लिया जा रहा है। रविंद्र बावरिया कहतें है कि स्कूलों की फीस कम होनी जरूरी है ताकि आम वर्ग बच्चों को पढ़ा सके।