scriptachievement: गोंड कला संस्कृति के संवाहक भज्जू श्याम को मिलेगा पद्मश्री अवार्ड | Gond tribal artist Bhajju Shyam will get Padrashree award | Patrika News

achievement: गोंड कला संस्कृति के संवाहक भज्जू श्याम को मिलेगा पद्मश्री अवार्ड

locationजबलपुरPublished: Jan 25, 2018 11:00:20 pm

Submitted by:

Premshankar Tiwari

आदिवासी समुदाय के गोंड आर्टिस्ट के नाम से जाने जाते हैं भज्जू श्याम, पांच भाषाओं छपी इनकी किताब

Bhajju Shyam will get Padrashree award

गोंड आदिवासी कलाकार भज्जू श्याम को मिलेगा पद्यश्री अवार्ड

जबलपुर। नर्मदा के आंचल के सबसे प्राचीन वाशिंदे कहे जाने वाले गोंड आदिवासियों को राष्ट्रीय मंच पर मान बढ़ा है। यहां के आदिवासी गोंड कलाकार भज्जू श्याम को पद्मश्री अवार्ड देने की घोषणा की गई है। आदिवासी समुदाय गोंड के आर्टिस्ट के नाम से ख्यात भज्जू श्याम के लिए इस अवार्ड की घोषणा से अंचल के लोगों के चेहरे खिल उठे हैं। भज्जू को मिल रहे इस सम्मान को प्रबुद्धजनों ने पुरातन आदिवासी संस्कृति और कला का सम्मान निरूपित किया है।

रगों में बसी संस्कृति
महाकोशल अंचल के पाटन गढ़ गांव में जन्म 46 वर्षीय भज्जू श्याम गरीब आदिवासी परिवार से हैं। उन्होंने गरीबी ही नहीं बल्कि आदिवासी संस्कृति को करीब से देखा और जिया है। वह उनके रगों में बसी है। इसी संस्कृति को उन्होनेंं अपनी तूलिका से कागजों पर उकेरा और उसमें कला के रंग भरे हैं। उनकी कलाकृतियों को देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी पसंद किया गया है।

खूब बिकी कृति
साथी चित्रकार विनय अंबर के अनुसार भज्जू श्याम अपनी गोंड पेंटिंग के जरिए यूरोप में भी प्रसिद्धी हासिल कर चुके हैं। उनके कई चित्र किताब का रुप ले चुके हैं। ‘द लंडन जंगल बुक’ की 30000 कॉपी बिकी और यह 5 विदेशी भाषाओं में छप चुकी है। इन किताबों को भारत और कई देशों (नीदरलैंड, जर्मनी, इंग्लैंड, इटली, कर्जिस्तान और फ्रांस) में प्रदर्शित व पसंद किया गया है।

चौकीदार की नौकरी
अपनी कृतियों के लिए दुनियाभर में ख्याति अर्जित कर चुके भज्जू श्याम जबलपुर के पास पाटनगढ़ गांव के निवासी हैं। गोंड कलाकार भज्जू श्याम की पेंटिंग की दुनिया में अलग ही पहचान बनी है। गरीब आदिवासी परिवार में जन्म भज्जू श्याम ने अपने संघर्ष के दिनों में रात में चौकीदार की नौकरी भी की है। प्रोफेशनल आर्टिस्ट बनने से पहले भज्जू जी इलेक्ट्रिशियन का काम भी किया। इसी के सहारे वे अपना व परिवार का भरण पोषण करते थे। कई बार हालातों ने मजबूर किया, लेकिन उन्होंने कला का अपना रास्ता नहीं छोड़ा। साथी चित्रकार विनय के अनुसार भज्जू श्याम जबलपुर में भी रहे हैं। वे यहां भी अपनी कला का जौहर दिखा चुके हैं। उन्हें मिली इस उपलब्धि से संस्कारधानी के कलाकारों की पूरी टीम में खुशी का माहौल है।

मां बनाती थीं चित्र
गोंड कलाकार भज्जू श्याम की पेंटिंग्स दुनिया में अलग ही पहचान बना चुकी हैं। 1971 में जन्मे भज्जू श्याम के अनुसार उनकी मां घर की दीवारों पर पारंपरिक चित्र बनाया करती थीं और दीवार के उन भागों पर जहां उनकी मां के हाथ नहीं पहुंच पाते थे, वहां भज्जू श्याम अपनी उनकी मदद किया करते थे। बस यहीं से कला ने उनके मन में जन्म लिया और उसी के सहारे वे इस मुकाम तक पहुंचे हैं। इसका श्रेय वे अपने सभी स्नेहीजनों को देते हैं।

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