सरकार की नीति के तहत जो कंपनियां गठित होंगी उनमें सेना के लिए हथियारों का उत्पादन करने वाली जबलपुर की आयुध निर्माणी खमरिया (ओएफके), गन कैरिज फैक्ट्री (जीसीएफ), वीकल फैक्ट्री जबलपुर (वीएफजे) और गे्र आयरन फाउंड्री (जीआइएफ) समाहित होंगी। जो 7 प्रस्तावित कंपनियां हैं, उनमें 4 के अधीन शहर की निर्माणियां होंगी। इसका असर 15 हजार से ज्यादा अधिकारी-कर्मचारियों पर भी होगा। वे अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
मिट जाएगा इतिहास
शहर की आयुध निर्माणियों का कई क्षेत्रों में बड़ा योगदान रहा है। इनका अपना इतिहास है। जीसीएफ की स्थापना अंगे्रजों ने 1904 में की थी। तो ओएफके भी अंग्रेजी हुकुमत के जरिए 1942 में अस्तित्व में आई। वीएफजे और और जीआइएफ जरुर आजादी के बाद शहर में आईं, लेकिन उनका योगदान भी कम नही है। निर्माणियों के साथ इन सभी का हजारों वर्गमीटर का इस्टेट एरिया भी है। निगम बनने से इनका स्वरूप ही बदल जाएगा।
गिरेगी शहर की अर्थव्यवस्था
ऑल इंडिया डिफेंस एम्पलाइज फेडरेशन (एआइडीइएफ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष एसएन पाठक ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार का यह फैसला देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है। 200 पुरानी अधोसंरचना को एक रात में स्वाहा करना गद्दारी है। इससे सभी 41 आयुध निर्माणियों के 70 हजार से ज्यादा कर्मचारियों का भविष्य संकट में आ जाएगा। उनका कहना है कि जबलपुर की अर्थव्यवस्था में इन निर्माणियों का बड़ा रोल है। युवाओं के लिए रोजगार का बड़ा जरिया छिन जाएगा। उन्होंने बताया कि इस फैसले के खिलाफ पूरी ताकत के साथ लड़ाई लड़ेंगे।
सरकार ने कहा होगा फायदा
उधर सरकार ने इस फैसले को निर्माणियों के लिए हितकर बताया। जो रिपोर्ट सामने आईं हैं उनमे कहा गया है कि सातों कंपनियां सरकारी होंगी। कर्मचारियों के हितों को कोई नुकसान नहीं होगा। दावा किया जा रहा है कि निगमीकरण से उनकी क्षमता मेंं इजाफा होगा। उत्पादन बढेग़ा। सैन्य हथियारों की ज्यादा लागत का सवाल भी नहीं रहेगा। उन्हें नई तरह की सैन्य सामग्री बनाने का अवसर मिलेगा। यही नहीं इन निर्माणियों में बनने वाले हथियारों का उपयोग पहले की तरह देश की सेना करेगी। वहीं विदेशों में भी निर्यात के अवसर मिलेंगे। हालांकि इन लाभों को कर्मचारी महासंघ दिखावा बता रहे हैं।