मोटे अनाज के उत्पाद को मिला मार्केट
आदिवासी अंचल के उत्पादों से हो रहा स्थानीय लोगों की आजीविका में सुधार
उत्पादन से जुड़ी महिलाओं कहना है- ‘हमने सोचा नहीं था कि गऱीबों का अनाज कभी शहरों तक भी पहुंचेगा।’ स्वाद और पौष्टिकता से भरपूर कोदो ने उनकी आमदनी को मजबूत किया है। इससे आदिवासी अंचल की महिलाओं में आत्मबल और नवाचार के लिए प्रेरणा भी मिली है।
लक्ष्मी स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष मायावती ने बताया कि तीन वर्ष पहले तक इस अनाज की बहुत कम मांग थी। आत्मा परियोजना से मिल की स्थापना तो आठ-दस साल पहले हुई, लेकिन खरीदार नहीं मिलते थे। जब से नोडल एजेंसी के तौर पर ब्रांडिंग और मार्केटिंग के लिए अमरकंटक विश्वविद्यालय का सहयोग मिला, उत्पाद को नई पहचान मिल गई। आमदनी भी दोगुना से ज्यादा हुई। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय एमएसएमई के एलबीआई प्रशिक्षण केंद्र के समन्यवयक प्रो. आशीष माथुर ने बताया कि तीन साल पहले महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर पुष्पराजगढ़ के बहपुरी गांव की महिलाओं के समूह ने कोदो अनाज को ब्रांड के रूप में लाया। विश्वविद्यालय और जिला प्रशासन ने लक्ष्मी और सतगुरु समूह के साथ मिलकर पौष्टिक अनाज को एक ब्रांड के रूप में बाजार में उतारा।
बढ़ा हेल्थ के प्रति क्रेज
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रकाश मणि त्रिपाठी ने बताया कि लोगों में स्वास्थ के प्रति जागरुकता बढ़ी है। कोदो में कई लाभकारी तत्व हैं जो ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं। इसकी सुलभ उपलब्धता नहीं होने से न सिर्फ लोगों को बल्कि किसानों को भी नुकसान हो रहा है। विवि के आजीविका व्यापार केंद्र के जरिए ग्रामीण महिलाओं को इसकी मार्केटिंग के साथ ब्रांडिंग भी सिखाई। अमरकंटक क्षेत्र का शहद विशेष गुणों से आच्छादित है। शहद संग्रहण, मधुमक्खी पालन और मार्केटिंग व ब्रांडिंग से महिलाओं को जोडऩे का प्रयास किया है।