फाइन आर्ट्स में चित्रकला, मूर्तिकला आदि की कलात्मक पोर्टेट और मूर्तियां बनाने वाले छात्र-छात्राओं की अद्भुत प्रतिभा को तार-तार किया जा रहा है। इन विद्यार्थियों की ओर से बनाई गई कृति को कचरे में फेंका जा रहा है। यहां ग्राउंड से लेकर कमरे में भर दिया गया है, जिसके उचित रखरखाव नहीं होने से उनकी गत बन रही है। स्थिति यह हो गई है कि ये कृतियां मिट गई हैं, दो कुछ मिटने की कगार पर पहुंच गई हैं। जानकारों का कहना है कि यहां ये कृतियां धूल और पानी में छोड़ दी गई हैं, जिससे ये खराब हो रही हैं।
मिट्टी की मूर्तियां घास में
संस्थान के परिसर की हालत यह है कि यहां ग्राउंड में एक ओर इसे पक्का करके वहां पत्थर को तराश कर बनाई गई कृतियों को व्यवस्थित लगाया गया है, लेकिन वहीं दूसरी ओर ग्राउंड में मिट्टी से बनी मूर्तियां मैदान में रख दी गई हैं, यहां घास में ये कृतियां खराब होने की कगार पर है। इन मूर्तियों का बेस गलने लगा है।
दीवार से टिका दी पेंटिंग
यहां भवन के किनारे बच्चों द्वारा बनाई गई पेंटिंग दीवार से टिकाकर रख दी गई है। ये पेंटिंग पानी-धूल से खराब हो रही है। वहीं दूसरी ओर एक लकड़ी के टेल पर भी मूर्तियों के ढांचे रखे हैं, जो पानी से गल रहे हैं। कुछ मूर्तियों को जरूर पॉलीथिन से बांध कर रखा गया है।
कॉरिडोर में कचरे की भांति उपकरण
मूर्ति, चित्रकारी में इस्तेमाल होने वाले उपकरण कॉरिडोर में कचरे की भांति रख दिए गए हैं। इन्हें रखने की जगह ही नहीं बनाई गई हैं। हालात यह हो गई है कि यहां डेस्क और बेंच भी सही तरीके से नहीं रखे गए हैं।
एक नजर
संस्थान है दो मंजिला
मूर्तियां, चित्र सहेजने की है पर्याप्त जगह
कॉरिडोर सहित अन्य जगह का रखरखाव नहीं।
लाइब्रेरी का इस्तेमाल नहीं।
घास कटाई की व्यवस्था नहीं।
खराब होने मूर्तियां बाहर निकाल दी।
कल्चरल निदेशक पीके झा कहते हैं कि प्रस्ताव बनाकर पाइनेंस को भेजा है। प्रक्रिया चल रही है। स्वीकृत होते ही कार्य शुरू हो सकेंगे। संस्थान में जो बाहर मूर्तियां आदि रखी हैं, वह मजबूत है। लेकिन मैं फिर भी उन्हें दिखवाता हूं।