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जबलपुर

हलषष्ठी व्रत 2019: भूलकर भी इन वस्तुओं का इस्तेमाल न करें, वरना पुत्र के लिए हो सकता है संकट

हलषष्ठी व्रत 2019, पुत्र की दीर्घायु, पुत्र की अकाल मृत्यु, भाद्र कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि, हलधर बलराम जी का जन्म,

जबलपुरAug 16, 2019 / 11:23 am

Lalit kostha

हलषष्ठी व्रत 2019, पुत्र की दीर्घायु, पुत्र की अकाल मृत्यु, भाद्र कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि, हलधर बलराम जी का जन्म,

हलषष्ठी व्रत 2019, पुत्र की दीर्घायु, पुत्र की अकाल मृत्यु, भाद्र कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि, हलधर बलराम जी का जन्म,

जबलपुर। पुत्र की दीर्घायु और उसकी अकाल मृत्यु को दूर करने वाला हलषष्ठी व्रत इस बार 21 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन समस्त माताएं अपने पुत्रों की लंबी आयु और उसके सुखद समृद्ध जीवन की कामना के साथ व्रत पूनज करेंगी।
ज्योतिषाचार्य जनार्दन शुक्ला के अनुसार भादों मास कृष्ण पक्ष की छठ तिथि को यह व्रत रखा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की मां देवकी ने लोमस ऋषि के कहने पर यह व्रत रखा था। इसके पुण्य से ही श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। व्रतधारी महिलाएं सुबह उठकर महुए की दातुन करती हैं। पेड़ों के फल बिना बोए अनाज, भैंस का दूध व दही का सेवन किया जाता है। निर्जला व्रत रखने के उपरांत शाम को पसाई धान के चावल व उबले महुए का सेवन कर परायण किया जाता है।

 

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यह व्रत वही स्त्रियाँ करती हैं जिनको पुत्र होता है-
भाद्र कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हल षष्ठी या हर छठ व्रत और पूजन किया जाता है। यह व्रत वही स्त्रियाँ करती हैं जिनको पुत्र होता है। जिनको केवल पुत्री होती है, वह यह व्रत नहीं करती। यह व्रत पुत्र के दीर्घायु के लिये किया जाता है। इस व्रत में हल के द्वारा जोता-बोया अन्न या कोई फल नहीं खाया जाता। क्योंकि इस तिथि को ही हलधर बलराम जी का जन्म हुआ था और बलराम जी का शस्त्र हल है। इस व्रत में गाय का दूध, दही या घी का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इस व्रत में केवल भैंस के दूध, दही का उपयोग किया जाता है। इस व्रत में महुआ के दातुन से दाँत साफ किया जाता है। शाम के समय पूजा के लिये मालिन हरछ्ट बनाकर लाती है। हरछठ में झरबेरी, कास (कुश) और पलास तीनों की एक-एक डालियाँ एक साथ बँधी होती है। जमीन को लीपकर वहाँ पर चौक बनाया जाता है। उसके बाद हरछ्ठ को वहीं पर लगा देते हैं । सबसे पहले कच्चे जनेउ का सूत हरछठ को पहनाते हैं।

 

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हरछठ व्रत कथा –

हरछठ व्रत अतिपावन व्रत है। महिलाएं इसे विधि-विधान से कर पूरे परिवार की सुख समृद्धि की कामना करती हैं। इस व्रत की महिमा अपार है पुराणिक कथाओं में आग में समाया और मगर के मुख में गया बालक भी इस व्रत के प्रभाव से सकुशल लौट आया। मुनि दुर्वासा जिनके क्रोध से संसार भयभीत रहता था ने भी इस व्रत को सामूहिक रूप से करने की बात कही है। एक समय जब हस्तिनापुर के महाराज युधिष्ठिर काफी विषाद में थे उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा है तब मुनि दुर्वासा ने स्वयं हस्तिनापुर मेें उपस्थित होकर युधिष्ठिर को सांत्वना प्रदान की और कहा कि चिंता न करो उत्तरा का गर्भ सुरक्षित रहेगा। उसमें किसी प्रकार का खंडित होने का दोष शेष नहीं रहेगा।

यह बात सुनते ही महाराज युधिष्ठिर उनके चर्रणों में गिरकर अश्रुपात करने लगे और कहा कि आप वह विधि बताए मुनिश्वर जिससे पांडव कुल और हस्तिनापुर का भावी राजा सुरक्षित रह सके। दुर्वासा ने कहा कि अश्वत्थामा के वाण में अति अग्नि तेज था उसकी चिंगारियां काफी विनाशकारी थी। इसके बाद भी उत्तरा के गर्भ में वाण के असर को केवल हरछठ व्रत ही निस्तेज कर सकता है। उत्तर ने इस व्रत को विधि विधान से किया। भगवान कार्तिकेय गणेश शिव और माता पार्वती का पूजन किया। बिना जोते बोए फल ग्रहण किए और अपना पूरा मन व्रत के पारायण में लगा दिया। इसके असर से भगवान वासुदेव ने उत्तरा को उसके गर्भ रक्षा का जो वचन दिया था वह पूरा किया।

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