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हनुमान जी ने इस कारण खुद ही समंदर में फेंक दी थी अपनी लिखी ” रामायण ” जानें खास रहस्य

locationजबलपुरPublished: Apr 30, 2018 02:45:16 pm

Submitted by:

Premshankar Tiwari

लिखने के बाद हनुमानजी ने समुद्र में फेंक दी थी रामायण, बस इतना सा था कारण

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प्रेमशंकर तिवारी@ जबलपुर। प्रकृति के सृजनहार, पालनहार और संहारकर्ता, भगवान नारायण की लीला अपरंपार है। वेदों में लिखा है कि ब्रम्हा, विष्णु और महेश भी उनकी माया को नहीं जान पाते और वे सदा उनकी भक्ति में ही लीन रहते हैं। सात समुंद्र की मसि करौं, लेखन या बनराई, धरती सब कागद करौं, हरि गुन लिखा न जाई… के माध्यम से मनीषियों ने यही प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि यदि सातों समुद्रों की स्याही बनाकर पूरी धरती को कागज में बदल दिया जाए तो भी प्रभु की लीला और उनके कृतित्व का बखान नहीं किया जाता है। हरि अनंत, हरि कथा अनंता… की उक्ति के अनुसार वे अनंत हैं। प्रभु ने विभिन्न कल्पों में समय-समय पर अवतार धारण करके धरती में धर्म की पुनरस्थापना की। त्रेता युग में भगवान राम का अवतार भी प्रभु की इसी लीला का एक हिस्सा था। उन्होंने अन्यायी रावण व अन्य राक्षसों का वध करके धर्म की ध्वजा फहराई। एक खुशहाल राम राज्य स्थापित किया। ये बात तो लगभग सभी जानते हैं, लेकिन कम ही लोगों को मालूम होगा कि भगवान राम के इस चरित्र को पटकथा के रूप में सबसे पहले हनुमानजी ने ही चित्रित किया था। उनकी रामायण का हनुमद् रामायण का नाम दिया गया। आईए आपको भी इसके कुछ रोचक पहलुओं से अवगत कराते हैं।

क्या है हनुमद रामायण
वैदिक संहिता के जानकार पं. रामसंकोची गौतम और पं. जगदम्बा प्रसाद तिवारी के अनुसार त्रेता युग में जब भगवान राम ने निशाचरों का वध करके राम राज्य स्थापित किया तो हर तरफ खुशहाली छा गई। धरती एक तरह से स्वर्ग हो गई। इसी बीच उनके अनन्य भक्त हनुमानजी के मन में विचार आया कि क्यों न भगवान राम की कथा को लिपिबद्ध किया जाए? इस विचार को पूरा करने के लिए वे हिमालय की कंदराओं में चले गए और एक चट्टान पर रामकथा लिखनी प्रारंभ की। उन्होंने इसे अपने नाखूनों से लिखा, ताकि हर शब्द अमिट और अमर रहे। यह बात धीरे-धीरे हर तरफ फैल गई। ऋषियों ने इसे हनुमद रामायण का नाम दिया।

महर्षि बाल्मीकि दूसरे लेखक
विद्वानों का मानना है कि महर्षि बाल्मीकि द्वारा लिखी गई रामायण.. रामकथा के रूप में सृष्टि की दूसरी रचना है। हालांकि कबंद, अद्भुत रामायण और आंनद रामायण को भी भगवान राम के समय की ही रचना माना जाता है। विद्वान मानते हैं कि वाल्मीकिजी अयोध्या पुरी वन्य क्षेत्र में रहते थे। दंडकारण्य में भगवान राम के साथ क्या-क्या घटित हुईं, यह राज दंडकाराण्य के ऋषि ही जानते थे। लेकिन वाल्मीकिजी की रामायण को ही सर्वाधिक मान्यता मिली, इसके पीछे भी रहस्य है, जिसने बाल्मीकिजी के दलित होते हुए भी उनकी गणना महान ऋषियों में करा दी। रहस्य है कि हनुमानजी के त्याग पर भगवान महादेव ने स्वयं बाल्मीकि कृत रामायण को मान्यता प्रदान की।

वीर हनुमान से भेंट
ज्योतिषाचार्य पं. जनार्दन शुक्ल व पं. अखिलेश त्रिपाठी के अनुसार शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि महर्षि बाल्मीकि ने संस्कृत में रामायण लिखने के बाद उसकी जांच की इच्छा प्रकट की। इस कार्य के लिए उन्होंने भगवान महादेव को उचित गुरु समझा। वे अपनी लिखी रामायण को दिखाने के लिए भगवान शिव के पास कैलाश धाम जाने लगे। रास्ते में उनकी भेंट हिमालय में तपस्यारत वीर हनुमान से हुई। इस समय वे शिला पर राम चरित को लिखकर निवृत्त हुए थे।

जब निराश हुए महर्षि
शास्त्रों में उल्लेख है कि वीर हनुमान ने महर्षि बाल्मीक से महादेव के पास जाने का कारण पूछा, तो महर्षि ने बताया कि उन्होंने भगवान के चरित्र पर रामायण की रचना की है। इसी को दिखाने के लिए वे भगवान शंकर केपास जा रहे हैं। यह सुनकर प्रसन्न हुए हनुमानजी ने भी महर्षि बाल्मीकि को बताया कि उन्होंने (हनुमानजी) भी भगवान राम की लीला और चरित्र को लिपिबद्ध किया है। महर्षि बाल्मीकि ने उत्सुकता वश शिला पर लिखी हनुमद रामायण का अवलोकन किया और वे निराश हो गए। उन्हें लगा कि यह कृति तो मेरे द्वारा लिखी गई रामायण से भी अच्छी है। उन्होंने महादेव के पास जाने का विचार त्यागना चाहा, लेकिन अगले ही पल वीर हनुमान त्याग उनके उनकी कृति के लिए संजीवनी बन गया।


समुद्र में फेंकी हनुमद रामायण
वीर हनुमान का त्याग किसी से छिपा नहीं है। उनका जीवन यूं कहें कि उनका हर पल ही अपने इष्ट राम के लिए था। भगवान राम के प्रति आस्था रखने वाले हर व्यक्ति को वे हृदय से चाहते हैं। शिला पर हनुमद रामायण को पढऩे के दौरान महर्षि बाल्मीकि के चेहरे पर उभरे निराशा के भावों को उन्होंने भांप लिया और फिर एक त्याग करने की ठानी। उन्होंने महर्षि के सामने ही शिला पर लिखी हुई हनुमद रामायण को उठाया और उसे ले जाकर समुद्र में विसर्जित कर दिया। उन्होंने इसे अपने प्रभु राम को समर्पित कर दिया और महर्षि बाल्मीकि को आश्वस्त कराया कि अब वे भोलेनाथ को अपनी कृति दिखाएं। यह अद्भुत है, इसे जरूर लोक मान्यता प्राप्त होगी। हुआ भी ऐसा ही भगवान महादेव ने महर्षि बाल्मीक की रामायण का अवलोकन करके उसे मान्यता प्रदान की।

महर्षि ने दिया ये वचन
किंवदंति है कि वीर हनुमान द्वारा खुद की हनुमद रामायण को विसर्जित करते देखकर महर्षि बाल्मीकि कृतज्ञ हो गए। उन्होंने हनुमानजी से कहा कि हे रामभक्त हनुमान, आप धन्य हैं! आप जैसा कोई दूसरा ज्ञानी, ध्यानी, त्यागी और दयावान नहीं है। हे हनुमान, आपकी महिमा का गुणगान करने के लिए मुझे एक जन्म और लेना पड़ेगा और मैं आपको वचन देता हूं कि कलयुग में, मैं एक और रामायण लिखने के लिए जन्म लूंगा। तब मैं यह रामायण आम लोगों की भाषा में लिखूंगा। इसे राम चरित मानस के रूप में जाना और पूजित किया जाएगा। मान्यता है कि रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास कोई और नहीं, बल्कि महर्षि वाल्मीकि का ही दूसरा जन्म था। इस बात का प्रमाण यह भी है कि तुलसीदासजी अपनी ‘रामचरित मानस’ लिखने के पूर्व हनुमान चालीसा लिखकर हनुमानजी का गुणगान करते हैं और इसके बाद वे रामचरित मानस लिखते हैं।

महाकवि कालिदास से जुड़ा ये संयोग
जानकारों के अनुसार किंवदंति है कि कालिदास के काल में शिला की एक पट्टिका समुद्र के किनारे मिली थी। इसमें अनूठी लिपि थी। जिसे एक सार्वजनिक स्थान पर टांग दिया गया था, ताकि कोई विद्यार्थी उस पर लिखी गूढ़ लिपि को समझ और पढकऱ उसका अर्थ निकाल सकें। ऐसा माना जाता है कि कालिदास ने उसका अर्थ निकाल लिया था और वो ये भी जान गए थे कि ये पट्टलिका कोई और नहीं, अपितु हनुमानजी द्वारा रचित हनुमद रामायण का ही एक अंश है, जो कि जल के साथ प्रवाहित होकर यहां तक आ गया है। गोस्वामी तुलसीदास के हाथ भी वहीं पट्टलिका लग गई थी। उसे पाकर तुलसीदास ने अपने आपको बहुत भाग्यशाली माना कि उन्हें हनुमद रामायण के श्लोक का एक पद्य प्राप्त हुआ है।


‘रचितमनिलपुत्रेणाथ वाल्मीकिनाब्धौ,
निहितममृतबुद्धया प्राड् महानाटकंयत्।।
सुमतिनृपतिभेजेनोद्धृतं तत्क्रमेण,
ग्रथितमवतु विश्वं मिश्रदामोदरेण।।’

उक्त हनुमन्नाटक रामायण के अंतिम खंड में लिखा हुआ है। किंवदंती यह भी है कि विद्वानों से सुनकर राजा भोज ने भी कुछ शिला पट्टिकाओं को समुद्र से निकलवाया और जो कुछ भी मिला उसको उनकी सभा के विद्वान दामोदर मिश्र ने संगतिपूर्वक संग्रहीत किया था।


कई भाषाओं में है रामायण
भगवान नारायण के दो प्रमुख अवतार यानी भगवान राम और श्री कृष्ण ही ऐसें अवतार हैं, जिन पर सर्वाधिक ग्रंथ लिखे गए हैं। भगवान की लीला पर आधरित रामायण तो कई भाषाओं में लिखी गई है। कई रचनाकारों ने इसे अलग-अलग तरीके से लिखा। राम की कथा को वाल्मीकिजी के लिखने के बाद दक्षिण भारतीय लोगों ने अलग तरीके से लिखा। जानकार बताते हैं कि रामायण संस्कृत, अन्नामी, बाली, बांग्ला, कम्बोडियाई, चीनी, गुजराती, जावाई, कन्नड़, कश्मीरी, खोटानी, लाओसी, मलेशियाई, मराठी, ओडिय़ा, प्राकृत, संथाली, सिंहली, तमिल, तेलुगु, थाई, तिब्बती, कावी आदि सैकड़ों भाषाओं में लिखी गई है। इसके बाद कृष्ण काल, बौद्ध काल में रामायण में अनुवाद के कारण कई परिवर्तन होते चले गए, लेकिन मूल कथा आज भी वैसी की वैसी ही है।

 

ये हैं कुछ प्रमुख रामायण

– हनुमद् रामायण
– अध्यात्म रामायण
– वाल्मीकि की ‘रामायण’ (संस्कृत)
– आनंद रामायण
– ‘अद्भुत रामायण’ (संस्कृत)
– रंगनाथ रामायण (तेलुगु)
– कवयित्री मोल्डा रचित मोल्डा रामायण (तेलुगु)
– रूइपादकातेणपदी रामायण (उडिय़ा)
– रामकेर (कंबोडिया)
– तुलसीदास की ‘रामचरित मानस’ (अवधी)
– कम्बन की ‘इरामावतारम’ (तमिल)
– कुमार दास की ‘जानकी हरण’ (संस्कृत)
– मलेराज कथाव (सिंहली)
– किंरस-पुंस-पा की ‘काव्यदर्श’ (तिब्बती)
– रामायण काकावीन (इंडोनेशियाई कावी)
– हिकायत सेरीराम (मलेशियाई भाषा)
– रामवत्थु (बर्मा)
– रामकेर्ति-रिआमकेर (कंपूचिया खमेर)
– तैरानो यसुयोरी की ‘होबुत्सुशू’ (जापानी)
– फ्रलक-फ्रलाम-रामजातक (लाओस)
– भानुभक्त कृत रामायण (नेपाल)
– रामकियेन (थाईलैंड)
– खोतानी रामायण (तुर्किस्तान)
– जीवक जातक (मंगोलियाई भाषा)
– मसीही रामायण (फारसी)
– शेख सादी मसीह की ‘दास्ताने राम व सीता’।
– महालादिया लाबन (मारनव भाषा, फिलीपींस)
– दशरथ कथानम (चीन)
– हनुमन्नाटक (हृदयराम-1623)

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