16 अरब की बनेंगी तोप
जीसीएफ में वर्तमान समय में 700 करोड़ से ज्यादा का उत्पादन लक्ष्य है। यहां लाइट फील्ड गन, टैंक के पाट्र्स तो बन रहे थे, अब 155 एमएम 45 कैलीबर धनुष तोप का बड़ा लॉट भी तैयार किया जाएगा। रक्षा मंत्रालय ने 114 तोप का ऑर्डर दिया है। इनकी कीमत 16 अरब रुपए से ज्यादा है। इसी प्रकार सारंग गन का काम यहां होने जा रहा है। एल-70 गन के अपग्रेडेशन का काम भी यह निर्माणी कर रही है। इस फैक्ट्री की स्थापना को 100 साल से ज्यादा हो चुके हैं।
तीनों सेनाओं को बम
ओएफके में तीनों सेनाओं के लिए बम तैयार किए जाते हैं। निर्माणी के पास करीब 15 सौ करोड़ का उत्पादन लक्ष्य है। 26 फरवरी को वायुसेना ने यहीं बने बमों का इस्तेमाल किया। इसमें थाउजेंड पाउंडर और एरियल बम प्रमुख थे। इसी प्रकार 84 एमएम बम, 125 एमएम एफएसएपीडएस टैंकभेदी बम, 30 एमएम बीएमपी-2 जैसे विध्वंसकारी बमों का उत्पादन किया जाएगा। अंग्रेजों के शासनकाल में बनी यह फैक्ट्री चीन और पाकिस्तान के साथ युद्ध की गवाह है।
भारी वाहनों का उत्पादन
वीकल फैक्ट्री की स्थापना के भी इस साल 50 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। इस निर्माणी के पास काम की कमी है। लेकिन सेना के सहयोग में बड़ी भूमिका में रही है। अभी भी यहां एक हजार करोड़ से ज्यादा का उत्पादन लक्ष्य है। फैक्ट्री से सेना को स्टालियन और एलपीटीए वाहन मिलते हैं। सुरंगरोधी और हर मौसम में सेना को पीने योग्य पानी की सप्लाई के लिए वाटर बाउजर तैयार किए जाते हैं। इन वाहनों का उपयोग रसद और परिवहन के लिए किया जाता है।
यही ढलती है बम बॉडी
जीआईएफ भले देश की सबसे छोटी आयुध निर्माणियों में शामिल है लेकिन यहां काम भी गजब का होता है। करीब 180 करोड़ रुपए का वार्षिक उत्पादन करने वाली इस निर्माणी में हैंड ग्रेनेड, वायुसेना के लिए एरियल बम की बॉडी की ढलाई की जाती है। इसी प्रकार वायुसेना के लिए ही थाउजेंड पाउंडर बम और 250 किलोग्राम बम की ढलाई का काम भी शुरू होगा। यहां तोप और सैन्य वाहनों के कलपुर्जे भी तैयार किए जाते हैं।