यह है मामला
छिंदवाड़ा नगर निगम में कार्यरत दीपा महरोलिया ने 2013 में याचिका दायर कर राज्य सरकार के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसके जरिए उसकी अनुकंपा नियुक्ति को निरस्त कर दिया गया था। दीपा ने याचिका में कहा कि उसे नगर निगम ने 7 नवंबर, 2012 को अनुकंपा नियुक्ति प्रदान की। लेकिन 30 सितंबर 2013 को यह कहते हुए निकालने के आदेश जारी कर दिए गए कि उसे सामान्य वर्ग की सीट पर नियुक्ति दे दी गई थी। जबकि वह एससी वर्ग की थी। इस आदेश को उसने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। 20 जुलाई 2016 को जस्टिस सुजय पॉल की सिंगल बेंच ने इस याचिका का निराकरण करते हुए याचिकाकर्ता की नियुक्ति को उचित पाया था। उसे नियमित कार्य करते रहने देने के निर्देश दिए गए थे। इसी आदेश को सरकार ने अपील के जरिए डिवीजन बेंच के समक्ष चुनौती दी थी।
कोर्ट ने ये कहा
कोर्ट ने अपने विस्तृत फैसले में कहा कि आरके सभरवाल विरुद्ध पंजाब सरकार 1995 के मामले में सुको यह असमंजस दूर कर चुकी है। सुको के हवाले से कोर्ट ने कहा कि जब हर वर्ग के लिए आरक्षण प्रतिशत तय है तो आरक्षित वर्ग के पद पर आरक्षित वर्ग के ही उम्मीदवारों को लिया जाना चाहिए। सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों का इसके लिए विचार नहीं किया जाना चाहिए। जबकि दूसरी तरफ आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार सामान्य वर्ग के लिए निर्धारित पदों पर नियुक्त किए जा सकते हैं। राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता शिवेंद्र पांडे ने पक्ष रखा। अनावेदक नगर निगम कर्मी की ओर से अधिवक्ता उमाशंकर जायसवाल उपस्थित रहे।