याचिकाकर्ता का तर्क
नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के डॉ. पीजी नाजपांडे और एमए खान ने याचिका में कहा, एक जुलाई से शुरू सरकार की ‘सरल बिजली बिल योजनाÓ के तहत बीपीएल कार्डधारकों और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को 200 रुपए प्रतिमाह में बिजली दी जानी है। एक जुलाई तक इनके बकाया बिजली बिल भी माफ किया जाना है। इन दोनों योजनाओं से बिजली वितरण कंपनियों का बजट बिगड़ जाएगा। याचिकाकर्ता की ओर से वकील दिनेश उपाध्याय ने कहा, सरकार के इस कदम से बिजली कम्पनियों को 5179 करोड़ रुपए की हानि होगी और ये कंगाल हो जाएगी। इसका असर बिजली दरों पर पड़ेगा और जनता को महंगी बिजली मिलेगी। उन्होंने बताया कि इसी तरह नि:शुल्क बिजली देने के खिलाफ 2003 में याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट की शरण ली थी। तब कोर्ट ने सरकार को 100 करोड़ रुपए चुकाने के निर्देश दिए थे।
याचिकाकर्ता को हक नहीं
अंतिम सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा, यह सरकार और बिजली कम्पनियों के बीच का मसला है। बिजली कंपनियों को कोई आपत्ति है, तो उन्हें सामने आना चाहिए। बिजली दरों की शिकायत के लिए विद्युत नियामक आयोग की शरण ली जा सकती है। सरकार का पक्ष उपमहाधिवक्ता पुष्पेंद्र यादव ने रखा। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करने वाले नागरिक उपभोक्ता मंच का कहना है, वे अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।