यह है मामला
जबलपुर के समाजसेवी ज्ञानप्रकाश ने 2013 में यह जनहित याचिका दायर कर कहा कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 24 (1) के तहत अपराधिक मामलों में पक्ष रखने के लिए केंद्र सरकार की ओर से हाईकोर्ट की सलाह से नियमित कैडर में लोक अभियोजक नियुक्त किए जाने का प्रावधान है। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। धारा 25(ए ) के तहत राज्य सरकार द्वारा लोक अभियोजन संचालनालय स्थापित करने का प्रावधान भी मप्र सरकार ने संशोधित कर दिया, इसक ा भी पालन नहीं हो रहा है। वहीं हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा सीआरपीसी की धारा 24 की उपधारा 6 ए में किए गए संशोधन पर आपत्ति जताते हुए स्वत: संज्ञान लेकर भी एक जनहित याचिका सितंबर 2017 में दायर की थी। उक्त संशोधन के अनुसार नियमित लोक अभियोजकों के अलावा सात साल की वकालत का अनुभव रखने वाले वकीलों को भी विशेष लोक अभियोजक नियुक्त करने का प्रावधान है।
संविदा के वकील कर रहे पैरवी
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में अपराधिक मामलों की पैरवी के लिए नियमित लोक अभियोजक नियुक्त नहीं किए हैं। संविदा में नियुक्त किए गए शासकीय अभिभाषक व पैनल लॉयर समुचित तरीके से अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं कर रहे हैं। 8 नवंबर 2017 को कोर्ट ने राज्य सरकार से लोक अभियोजक व अतिरिक्त लोक अभियोजकों की नियुक्ति के संबंध में उठाए गए कदमों के संबंध में जवाब मांगा। शुक्रवार को याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि गत सुनवाई के दौरान मिली चेतावनी के बावजूद अब तक जवाब पेश नहीं किया गया। नाराज होकर कोर्ट ने सरकार पर कॉस्ट लगा दी।