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High Court judge said- वकील ने जानबूझकर गलती की है फिर न्यायिक प्रक्रिया की आंख में धूल झोंक रहे है, जानिए पूरा मामला

locationजबलपुरPublished: Oct 18, 2017 02:02:02 pm

Submitted by:

deepankar roy

रिठोरी ग्राम पंचायत के पूर्व सरपंच, सचिव के खिलाफ लंबित भ्रष्टाचार का मुकदमा खारिज करने से हाईकोर्ट का इनकार

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जबलपुर। मप्र हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में निर्धारित किया है कि ‘वकील की गलती की सजा पक्षकार को नहीं मिलना चाहिए यह एक सुस्थापित न्याय सिद्धांत है लेकिन वकील की जानबूझकर की गई गलती के मामले में यह सिद्धांत लागू नहीं होता। इस मत के साथ जस्टिस एसके सेठ व जस्टिस अंजुलि पालो की डिवीजन बेंच ने रिठोरी ग्राम पंचायत की पूर्व सरपंच व पूर्व सचिव की अर्जी निरस्त कर दी। दोनों ने उनके खिलाफ लंबित भ्रष्टाचार के मुकदमे को खारिज करने की मांग के साथ यह अर्जी दायर की थी।
यह है मामला
जबलपुर के खमरिया थानांतर्गत ग्राम पंचायत रिठोरी की पूर्व सरपंच सरोज रजक व पूर्व सचिव गणेश केवट की ओर से यह अर्जी दायर की गई थी। इसमें कहा गया था कि आवेदकों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत पर खमरिया थाने में भादंवि की धारा 420, 467, 468, 471, 409, एवं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(2)/ 13(1 ) ( डी) के तहत 2013 में प्रकरण दर्ज किया गया। 3 सितंबर 2014 को इस मामले में जिला अदालत के विशेष न्यायाधीश ने आवेदकों के खिलाफ संज्ञान लिया। इसी आदेश को आवेदन में चुनौती देते हुए इसे निरस्त करने का आग्रह किया गया। कोर्ट से आग्रह किया गया कि वकील की अनुपस्थिति के चलते गत 18 सितंबर को आवेदन निरस्त कर दिया गया था, लिहाजा इसे बहाल किया जाए।
वकील को गया था मैसेज
सुनवाई के दौरान कोर्ट को आवदेक के वकील ने बताया कि वे 18 सितंबर की कॉज लिस्ट में उक्त केस पर उनकी नजर नहीं पड़ सकी। इसलिए वे कोर्ट में उपस्थित नहीं हो सके। तर्क दिया गया कि यह वकील की गलती है और न्याय सिद्धांत के अनुसार वकील की गलती की सजा पक्षकार को नहीं मिलनी चाहिए। इस पर कोर्ट ने कहा कि आवेदक के वकीलों आरके चौबे व एमके चौबे के मोबाइल फ ोन पर 15 सितंबर को ही हाईकोर्ट की रजिस्ट्री से ऑटो जनरेटेड मैसेज भेज दिया गया था। लिहाजा यह तर्क सरासर गलत है कि आवेदकों के वकीलों को पेशी की जानकारी नहीं थी।
कोर्ट की आंख में धूल झोंकी
अपने निर्णय में कोर्ट ने कहा कि यह आवेदक के वकीलों की चूक या गलती नहीं बल्कि जानबूझ कर कोर्ट और न्यायिक प्रक्रिया की आंख में धूल झोंकी गई है। लिहाजा यहां उपरोक्त सिद्धांत लागू नहीं होता। कोर्ट ने आवेदकों को कहा कि इसके चलते उन्हें जो परेशानी हुई है, उसके लिए वे उचित विधिक कार्रवाई कर सकते हैं। इसी के साथ कोर्ट ने अर्जी निरस्त कर दी।
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