पन्ना जिले की रैपुरा तहसील के कजगवां निवासी आदिवासी चरण ने याचिका में कहा कि 2002 में तत्कालीन राज्य सरकार ने भूमिहीन आदिवासियों को खाली शासकीय भूमि के पट्ट दिए थे। याचिकाकर्ता को भी योजना के तहत पट्टा दिया गया। लेकिन, बाबूलाल लोधी नामक व्यक्तिने 2019 में पट्टा निरस्त करने की मांग करते हुए तहसीलदार के समक्ष आवेदन दायर किया। बाबूलाल का कहना था कि चरण को जिस भूमि का पट्ट दिया गया, वह सरकारी है। बाबूलाल के परिवार का उस भूमि पर 40 से 50 वर्ष पुरान कब्जा है। तहसीलदार ने आवेदन खारिज कर दिया। अधिवक्ता अनूप सिंह बघेल ने तर्क दिया कि बाबूलाल लोधी ने तहसीलदार के आदेश को सम्भागायुक्तके समक्ष अपील के जरिए चुनौती दी। लेकिन, सम्भागायुक्तने अवैध तरीके से तहसीलदार का पूर्व आदेश निरस्त कर दिया। पट्टे की भूमि को पुन: शासकीय जमीन घोषित करते हुए बेदखल करने का आदेश दे दिया। जबकि, उन्हें इसका अधिकार ही नहीं था।