यह है मामला
भोपाल के एडवांस मेडिकल कॉलेज के 146 छात्रों की ओर से याचिका दायर कर कहा गया कि उक्त कॉलेज को 2014 में मप्र सरकार ने सशर्त अनुमति दी थी। सरकार ने अनुमति संबंधी एसेंसिएलिटी सर्टिफिकेट में कहा था कि कॉलेज यदि मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने में असफल रहता है तो इसके छात्रों की जिम्मेदारी सरकार की होगी। अधिवक्ता आदित्य संघी ने कोर्ट को बताया कि 2016 में एमसीआई ने कॉलेज का निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान नियमों के अनुसार कॉलेज में न तो 300 बिस्तरों का अस्पताल पाया गया, ना ही भवन और ना अन्य मूलभूत सुविधाएं। इस पर एमसीआई ने कॉलेज की मान्यता समाप्त कर दी। इसके चलते छात्रों का भविष्य अधर में लटका हुआ है। लिहाजा इनके लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जाए। कॉलेज की ओर कहा गया कि जल्द ही वे भवन व मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करा रहे हैं। राज्य सरकार की ओर से एमसीआई की रिपोर्ट का समर्थन किया गया। याचिकाकर्ताओं को सरकारी कॉलेज में प्रवेश लेने के लिए विचार करने का आश्वासन दिया गया। इस पर कोर्ट ने छात्रों को सरकारी मेडिकल कॉलेजों में शिफ्ट करने के निर्देश दे दिए।
चयन सूची की तारीख से नहीं मिलेगी वरिष्ठता
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि पारस्परिक वरीयता प्रशिक्षण पर उपस्थित होने की तारीख से निर्धारित होती है। चयन सूची के आधार पर इसे तय नहीं किया जा सकता है। जस्टिस वंदना कसरेकर की बेंच ने इस अभिमत के साथ वरीयता निर्धारण के संबंध में सरकार द्वारा जारी आदेश को सही करार दिया। कोर्ट ने सहायक वन संरक्षकों की ओर से इस आदेश को दी गई चुनौती खारिज कर दी।
यह है मामला
आदर्श श्रीवास्तव सहित अन्य की ओर से दायर याचिका में मध्यप्रदेश सरकार के 17 सितम्बर 2014 को पारित आदेश को चुनौती दी गई थी। इसमें सहायक वन संरक्षकों की पारस्परिक वरीयता (इंटर सीनियारिटी) तय की गई। याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क दिया गया कि हाईकोर्ट के 29 नवंबर 2012 को जारी आदेश की उचित व्याख्या न करते हुए शासन ने गलत आदेश जारी कर दिया। जबकि सरकार की ओर से अधिवक्ता जान्हवी पंडित ने कहा कि पूर्व आदेश का शब्दश: पालन किया गया। कोर्ट ने तर्क स्वीकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट के 29 नवंबर 2012 को दिए गए आदेश को चुनौती नहीं दी । इसलिए उक्त आदेश ही अंतिम व मान्य होगा। इसके परिपालन में ही शासन ने 17 सितम्बर 2014 को आदेश पारित किया है। कोर्ट ने याचिका निरस्त कर दी ।