यह है मामला
जबलपुर के अनिल नवेरिया, खुशबू सेठ, सीहोर के मनोज कुमार, हरदा के मुकेश चंदेल, बैतूल की उषा परस्ते, छतरपुर की शशिप्रभा सचान, उमरिया की कंचन वर्मा सहित प्रदेश भर के स्कूलों में 8-10 साल अतिथि शिक्षक के रूप में सेवा देने वाले 43 लोगों ने याचिका दायर की है। इसमें कहा गया कि राज्य सरकार ने लंबे अरसे से कार्यरत अतिथि शिक्षकों को नियमित शिक्षकों की नियुक्ति में अतिरिक्त अंक देने को कहा था। लेकिन 24 अक्बूबर को जारी नोटिफिकेशन व उसके तारतम्य में निकाले गए उच्च माध्यमिक शिक्षकों के पदों पर भर्ती के विज्ञापन में अतिथि शिक्षकों के लिए कुल सीटों की 25 फीसदी सीट निर्धारित कर दी गईं।
नियमिती करण के थे हकदार
अधिवक्ता बृंदावन तिवारी ने तर्क दिया कि नियमित रिक्त पदों पर कार्य करते रहने की वजह से याचिकाकर्ता नियमित किए जाने के हकदार थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वहीं राज्य सरकार ने भी धोखा करते हुए सीटें सीमित कर याचिकाकर्ताओं के अधिकार का हनन किया है। यदि अतिथि शिक्षकों के लिए सीट सीमित नहीं की जातीं, तो वे सभी सीटों के लिए आवेदन कर सकते थे। उन्होंने इसे गैरकानूनी बताते हुए सीटें सीमित करने की शर्त निरस्त करने के निर्देश देने का आग्रह किया। प्रारंभिक सुनवाई के बाद कोर्ट ने प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा विभाग, आयुक्त लोक सूचना, आयुक्त राज्य शिक्षा केंद्र व मप्र प्रोफेशनल एक्जामिनेशन बोर्ड को नोटिस जारी किए।