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सूख-सूखकर मर रहीं-मिट रहीं ऐतिहासिक बावड़ियां, प्रशासन को फिक्र नहीं, आमजन को कदर नहीं

locationजबलपुरPublished: Dec 02, 2022 06:22:40 pm

Submitted by:

shyam bihari

जबलपुर में संरक्षण व सफाई के लिए नहीं उठाए जा रहे कदम, कचरे-अव्यवस्था का आलम

 

bavli jabalpur
सूख-सूखकर मर रहीं-मिट रहीं ऐतिहासिक बावड़ियां, प्रशासन को फिक्र नहीं, आमजन को कदर नहीं

जबलपुर। गोंडवाना काल में करीब 4-5 सौ साल पहले जबलपुर क्षेत्र में कई बावड़ियां बनवाई गईं थीं। इतिहासकारों का मानना है कि जबलपुर व आसपास ऐसी बावड़ियों की संख्या सौ के करीब थी। अकेले जबलपुर शहर में दो दर्जन से ऊपर बावड़ियां गोंड शासकों ने बनवाई थीं। ये गोंडवानाकालीन जलतंत्र और वास्तुकला का अनुपम उदाहरण थीं। इनमें से आधे से अधिक बेतरतीब निर्माण व विकास की भेंट चढ़कर वजूद खो बैठीं। इसके बावजूद शहर में एक दर्जन से अधिक बावड़ियां ऐतिहासिक जल विरासत के रूप में अब भी जीवित हैं। इनकी हालत खराब है और इन्हें संरक्षण की दरकार है। जानकारों का कहना है कि इनका संरक्षण व जीर्णोद्धार कर इन्हें अच्छे जलस्रोत और पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित किया जा सकता है।
नक्काशीदार निर्माण की अनुपम कला
इन बावड़ियों की वास्तुकला बेजोड़ है। इतिहासकार डॉ. आनन्द राणा का कहना है कि जबलपुर नगर में निर्मित लगभग 2 दर्जन से अधिक बावड़ियां गोंड़वानाकालीन वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। काले व ग्रेनाइट पत्थर पर नक्काशीदार निर्माण किए गए। बावलियों में कपड़े बदलने, विश्राम व भोजन के लिए कक्ष भी बनाए गए। इनमे से अधिकतर बावड़िया मुख्यतः चौकोर और अष्टकोणीय आकार में हैं। नीचे जाने के लिए इनमे सुंदर व घुमावदार सीढि़यां हैं। सीढ़ियों के बीच मे दीवारों के अंदर भी विश्राम स्थल बने हैं । सीढ़ियों में प्रयुक्त पत्थरों की जुड़ाई चूने से की गई है। जुड़ाई का काम बावड़ी की चौकोर तली तक किया गया है। सभी बावड़ियों की तली में कुआं बनाया गया है। अधिकांश बावड़ियों में कुआं वाला हिस्सा ग्रेनाइट का है। उसी से बावडियों को पानी मिलता था।
सरकार, अफसरों को चिंता नहीं
शहर के प्रबुद्धजन भी इन ऐतिहासिक बावड़ियों की दुर्दशा को लेकर चिंतित हैं। अधिवक्ता ब्रह्मानन्द पांडे ने कहा कि जबलपुर शहर में जल संसाधन के साथ ही वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था उस समय की गई थी, जब तकनीकी और आधुनिक संसाधनों का अभाव हुआ करता था। लेकिन आज आधुनिक संसाधनों और तकनीकी सुदृढ़ता के बावजूद भी धीरे-धीरे संस्कारधानी की अधिकांश बावड़ियां लुप्त हो गई हैं। जो बची हैं वो बदहाल होती जा रही हैं। सरकारें, जनप्रतिनिधि व अफसर इसको लेकर बिल्कुल चिंतित नहीं हैं। इनका संरक्षण व जीर्णोद्धार कर इन्हें पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की दिशा में प्रयास होना जरूरी है।
ये हैं प्रमुख जीवित बची बावड़ियां और उनके हालात
महाराजपुर बावड़ी - नेशनल हाईवे क्रमांक 7 पर महाराजपुर में स्थित, गोंड शासक महाराजशाह ने बनवाई- गंदगी व टूटफूट का शिकार।
गोपाल बाग बावड़ी-गोंड़वानाकालीन निर्माण, तमरहाई, उपरेनगंजनाले के किनारे, खंडहर में तब्दील, कचरे से अटी ।
उजारपुरवा बावड़ी - रानीताल, गोंडवानाकालीन निर्माण, गोंड शासक वीरनारायण के नाम पर निर्मित, गंदगी और अव्यवस्था का शिकार।
रामपुर बावड़ी- बन्दरिया तिराहा, गोंड़वानाकालीन निर्माण, टूटफूट का शिकार, जल है किंतु गंदगी का अंबार।
शाहनाला बावड़ी- शाहनाला मोड़, नर्मदा रोड (कमली वाले बाबा), गोंड शासकों ने कराया था निर्माण, अव्यवस्था और गंदगी ।
बादशाह मन्दिर बावड़ी- बादशाह हलवाई मन्दिर पोलीपाथर , गोंड़वानाकालीन निर्माण, नगर निगम द्वारा संरक्षित लेकिन बदहाल।
लाल कुआं बावड़ी- गढ़ा बजरिया क्षेत्र, गोंड़वानाकालीन निर्माण, असंरक्षित, सफाई व जीर्णोद्धार की दरकार।शारदा मन्दिर बावड़ी-मदनमहल किले के समीप, गोंडवानाकालीन निर्माण, सुरक्षित किन्तु सूखी और गन्दी।
मदन महल बावड़ी- मदनमहल किला, गोंडवानाकालीन निर्माण, सूखी, असंरक्षित, नष्ट होने की कगार पर।
गढ़ा-बजरिया बावड़ी- गढ़ा बजरिया क्षेत्र में गोंडवाना कालीन निर्माण, सुरक्षित लेकिन कचरे का अंबार।
बदनपुर बावड़ी- बदनपुर पहाड़ी पर दानव बाबा मन्दिर के समीप, गोंडवानाकालीन निर्माण, क्षतिग्रस्त, गंदगी का अंबार।
शास्त्री नगर की विषकन्या बावड़ी- तिलवारा रोड पर बाजना मठ के समीप स्थित, गोंड़वानाकालीन निर्माण,असुरक्षित, अव्यवस्था व गंदगी का आलम।
शिवनाथ बावड़ी, सगड़ा- गोंड़वानाकालीन यह बावड़ी जबलपुर से तिलवारा घाट को जाने वाली मुख्य सड़क पर सगड़ा गांव में है। इसकी जबलपुर से दूरी लगभग 13 किमी है। देखरेख के अभाव में वह खंडहर जैसी हो रही है।
सगड़ा बावड़ी- यह बावड़ी भी जबलपुर से तिलवारा घाट को जाने वाली मुख्य सड़क पर सगड़ा ग्राम में स्थित है। यह इसकी जबलपुर से दूरी लगभग 12 किलोमीटर है। इसकी मौजूदा स्थिति काफी अच्छी है। इसके बगल में काल भैरव मन्दिर है। मन्दिर और इसका निर्माण गोंड शासक दलपतशाह ने कराया था।
घोडा नक्कास बावड़ी- हनुमानताल स्थित हाजी हबीबुल्ला के अखाड़े में मौजूद यह बावड़ी गोंड़वानाकालीन है। सुरक्षा के लिहाज से जालियां लगाकर इसे कवर कर दिया गया है। इसमें गंदगी की भरमार है।

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