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स्मार्टफोन, महंगे मोबाइल दे रहे ये गंभीर बीमारी, सबसे ज्यादा युवा हो रहे इसका शिकार

locationजबलपुरPublished: Oct 10, 2019 01:17:49 pm

Submitted by:

Lalit kostha

स्मार्टफोन, महंगे मोबाइल दे रहे ये गंभीर बीमारी, सबसे ज्यादा युवा हो रहे इसका शिकार

खतरनाक है Mobile Radiation, *#07# टाइप कर जांचें फोन की SAR Value

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जबलपुर. लोगों की जरूरत बन चुके मोबाइल फोन लोगों को मानसिक रूप से बीमार बना रहे हैं। शहर में मनोचिकित्सकों के पास काउंसिलिंग के लिए आने वाले मरीजों में प्रतिदिन ऐसे नए मरीज मिल रहे हैं, जिनकी तकनीक (विशेष रूप से मोबाइल-इंटरनेट) से लगाव तकरीबन लत बन चुकी है। इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट्स और इंटरनेट के ज्यादा उपयोग से दिमाग पर असर पड़ रहा है। ये लोग चिड़चिड़ापन, गुस्सा, बेचैनी, अकेलापन और विचारों पर अनियंत्रण का शिकार हो रहे हैं। चिंताजनक बात यह है कि पीडि़तों और डिप्रेशन का शिकार होने वालों में सबसे ज्यादा किशोर और युवा हैं।

वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे : मोबाइल की लत से बढ़ रहा मानसिक रोग, सबसे ज्यादा डिप्रेशन का शिकार

मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिकों के पास आने वाले पीडि़तों में नाबालिग व युवाओं की संख्या अधिक

अनदेखी से गम्भीर नतीजे
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार शारीरिक बीमारियों को लेकर लोग जागरूक हैं। समस्या यह है कि मन की तकलीफा ज्यादा पता नहीं चलती। मोबाइल के कारण बच्चों का पढ़ाई में मन न लगना, युवाओं में प्रतियोगिता में असफलता का भय, कामकाजी महिलाओं को दोहरी जिम्मेदारी का भार सहित घर-ऑफिस का तनाव धीरे-धीरे लोगों का मेंटल हाइजीन खराब कर सकता है। मानसिक रोग के प्रारंभिक लक्षणों की अनदेखी से भविष्य में गम्भीर नतीजे हो सकते हैं। इससे पूरा परिवार प्रभावित हो सकता है।

 

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तेजी से बढ़े मरीज

– 100-150 मरीज मेडिकल अस्पताल की ओपीडी में रोज पहुंच रहे हैं
– 70-90 मरीज मेडिकल अस्पताल की ओपीडी में प्रतिदिन पांच साल पहले थे

– 25-40 प्रतिशत तक मरीज मोबाइल-इंटरनेट एडिक्शन के कुल मरीजों में हैं
– 14-35 वर्ष की आयु वर्ग के मानसिक रोगियों की संख्या में हो रही है वृद्धि

मानसिक रोगियों की स्थिति

– सबसे ज्यादा डिप्रेशन के पीडि़त
– दूसरे नंबर पर एंजायटी डिसऑर्डर

– तीसरे नंबर पर शारीरिक और मानसिक रोग


देश में हर चौथा व्यक्ति मानसिक रोग का शिकार
– 90 प्रतिशत पीडि़त खुद को बीमार नहीं मानते

– 15-20 प्रतिशत अवसादग्रस्त आत्महत्या कर लेते हैं
– 2020 तक मानसिक बीमारी दूसरे नंबर पर होने का अनुमान

 

woman on mobile phone

ऐसा दो सप्ताह से ज्यादा तो मानसिक रोग का खतरा

– उदासी, तनाव, चिंता, कमजोरी, थकान, चिड़चिड़ाहट
– घबड़ाहट, बेचैनी, अकारण डर, याददाश्त में कमी, भूलक्कड़पन

– गुस्सा ज्यादा आना, हीन भावना
– सिरदर्द, जांच सामान्य होने के बाद भी बीमारी या शिकायत बने रहना

– आत्महत्या का विचार या प्रयास
– एक ही विचार या कार्य को बार-बार करना, अत्यधिक सोचना, बार-बार नहाना/हाथ धोना

– भूख-नींद की कमी या अधिक होना, निराशा, नकारात्मक सोच, अरुचि उत्पन्न होना
– पारिवारिक कलह, झगड़े, ईष्र्या और कार्यस्थल पर असमायोजन

– व्यक्ति व व्यवहार संबंधी विकृतियां (झगड़ालू, शक, ज्यादा उत्साहित या उदासी)
– संवेगात्मक सामाजिक तनाव, द्वंद्व या अनिर्णय की स्थिति

– किशोरों से जुड़ी समस्याएं (ज्यादा घूमना, खर्च, नेट प्रयोग, भविष्य के प्रति चिंता)

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मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट्स से एग्रेशन और एकाग्रता में कमी आ रही है। मानसिक रोग की पहचान के लिए व्यक्ति की प्रवृत्ति पर ध्यान रखें। लक्षण पहचानने के लिए जागरुकता भी आवश्यक है। मूल स्वभाव से हटकर कोई भी चीज मानसिक बीमारी हो सकती है। कोई तनाव में है और बोल रहा है कि मैं ठीक हूं तो वह सामान्य नहीं हो सकता। समय रहते बीमारी का इलाज हो जाए तो मानसिक रूप से स्वस्थ हो सकते है। अनहोनी को टाला जा सकता है।

डॉ. ओपी रायचंदानी, एसोसिएट प्रोफेसर, एनएससीबी मेडिकल कॉलेज


लोगों को लगता है कि मनोचिकित्सक के पास पागल व्यक्ति ही जाता है। इस भ्रांति का समाप्त होना जरूरी है। रोग की पहचान के लिए आम लोगों को जागरूक होना होगा। आजकल सबसे ज्यादा समस्या लेकर अभिभावक आ रहे हैं कि उनका बच्चा मोबाइल नहीं छोड़ रहा है। मोबाइल और इंटनरेट के एडिक्शन से सबसे ज्यादा मेंटल हाइजीन खराब हो रहा है।
पायल चौरसिया, मनोवैज्ञानिक

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