जबलपुरPublished: Jun 22, 2021 08:34:40 pm
prashant gadgil
हाईकोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-24 के उल्लंघन पर राज्य सरकार से तीन सप्ताह में मांगा जवाब
Jabalpur High Court
जबलपुर. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि प्रदेश में उच्च न्यायालय एवं निचली अदालतों में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-24 के विपरीत सात साल से कम के अनुभव के वकील शासन की ओर से आपराधिक प्रकरणों में पैरवी कैसे कर रहे हैं? चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक व जस्टिस विजय शुक्ला की डिवीजन बेंच ने तीन हफ्ते के अंदर जवाब मांगा। अगली सुनवाई जुलाई के अंतिम सप्ताह में होगी। जबलपुर के आनंद नगर, अधारताल निवासी इंजीनियर ज्ञान प्रकाश की ओर से जनहित याचिका दायर कर कहा गया कि शासन का प्रतिनिधित्व करने के लिए अधिवक्ता के पास सात साल का न्यूनतम अनुभव जरूरी है। धारा-24 एवं 25 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय में किसी भी आपराधिक प्रकरण की पैरवी के लिए लोक अभियोजक को ही नियुक्तकिया जाना चाहिए, जिसे सात वर्ष का वकालत में न्यूनतम अनुभव हो। जबकि, प्रदेश भर में एक-एक, दो-दो साल के अनुभव वाले कनिष्ठ अधिवक्ता गम्भीर आपराधिक प्रकरणों में पैरवी कर रहे हैं। यह दंड प्रक्रिया संहिता का उल्लंघन है। शासन की इसमें संलिप्तता है। याचिका में यह भी कहा गया कि राजनीतिक दबावों में आकर योग्यता पूरी न करने वाले अधिवक्ताओं को न केवल संविदा पर नियुक्तकिया जाता है, अपितु उनको महत्वपूर्ण प्रकरणों में पैरवी के लिए अधिकृत भी कर दिया जाता है। सुनवाई के दौरान कोर्ट मित्र अधिवक्ता आदित्य संघी ने कहा कि संविदा पर पैनल अधिवक्ताओं की नियुक्ति कर शासन का पक्ष रखने के लिए अधिकृत कर दिया जाता है। रजिस्ट्रार जनरल की ओर अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता ने भी यह अवगत कराया गया कि पूर्व में भी न्यायालय ने इस बात का संज्ञान लिया। लेकिन, किसी प्रकार के ठोस कदम नहीं उठाए गए।