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सैकड़ों वर्षों ने देश भर में दिखती है यहां के दुर्गोत्सव की दैवीय चमक

locationजबलपुरPublished: Oct 27, 2020 09:00:26 pm

Submitted by:

shyam bihari

जबलपुर में कोरोना के चलते पारम्परिक दशहरा चल समारोह स्थगित
 

सैकड़ों वर्षों ने देश भर में दिखती है यहां के दुर्गोत्सव की दैवीय चमक

jabalpur dashhara

जबलपुर। दशहरा पूरी दुनिया में मनाया जाता है। लेकिन, जबलपुर शहर में दशहरे का एक हजार साल से भी पुरानी परम्परा है। इस बार कोरोना के चलते पारम्परिक दशहरा चल समारोह को स्थगित कर दिया गया था। नवरात्रि पर देवी की आराधना का प्रचलन कलचुरिकाल से पहले का है। गोंडवाना काल में तो प्रत्येक सुख-दुख में मातारानी की आराधना सर्वोपरि रही। परिवार में उत्सव हो या दुख, इन सब की अभिव्यक्ति देवी के मठ मंदिरों में ही होती थी। इसी तरह जब बंग समाज यहां रोजगार के सिलसिले में आया तो अपने साथ संस्कृति की पोटली भी ले आया।
1872 में पहली देवी प्रतिमा विराजी
जबलपुर में मां दुर्गा की मिट्टी से बनी प्रतिमा सर्वप्रथम 1872 में बृजेश्वरदत्त के निवास पर स्थापित की गई। इसके तीन साल बाद अंबिकाचरण बैनर्जी के घर पर मूर्ति की स्थापना हुई, जो 1930 तक चलती रही। इसके बाद यह उत्सव बंगाली क्लब सिविक सेंटर में मनाया जाने लगा। 1878 में कलमान सोनी ने सुनरहाई में बुंदेली दुर्गा प्रतिमा स्थापित की। यहां के निवासी देवीप्रसाद चौधरी, उमाराव प्रसाद आदि ने इस प्रतिमा को स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित किया।
150 सालों से बुंदेली शैली की प्रतिमा स्थापित
बुन्देली शैली में निर्मित सुनरहाई और नुनहाई व कोष्टी मंदिर, मलखम, मां महामाया सदर की प्रतिमा के मूर्तिकार मिन्नी प्रसाद प्रजापति रहे। इनके परिवार की चौथी पीढ़ी को भी इस तरह की प्रतिमाओं के निर्माण में महारत हासिल है। अब अन्य मूर्तिकार भी इस शैली की प्रतिमाएं बनाने लगे हैं। बुन्देली शैली की भव्य प्रतिमा को गुड़हाई चौक में करीब सौ वर्ष तक स्थापित किया गया, बाद में वहां संगमरमरी प्रतिमा की स्थापना की गई। गढ़ा स्थित छोटी बजरिया में भी करीब 125 साल से दुर्गा प्रतिमा की स्थापना की जा रही है। गढ़ाफाटक स्थित महाकाली की प्रतिमा स्थापना का गौरवशाली इतिहास है। वर्तमान में जबलपुर का दशहरा न केवल मध्य भारत बल्कि पूरे देश में अपनी अलग पहचान रखता है।
झांकी में दिखे कोरोना से उपजी संवेदनाओं के रंग
इस बार नवरात्र में माता की भक्ति में जनसामान्य की संवेदनाओं के रंग भी शामिल रहे। कोरोना संक्रमण के चलते जनता की तकलीफ और इससे निपटने में अपनी जान की परवाह न करने वाले डॉक्टर्स, पुलिसकर्मी आदि कोरोना वारियर्स के प्रति लोगों के दिल में सम्मान नजर आया। इन्हीं संवेदनाओं को प्रदर्शित करने के लिए शहर में कोरोना संक्रमण पर आक्रमण और कोरोना योद्धाओं का सम्मान करतीं मां दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित की गई।

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