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बंदूक जब्त थी लेकिन थैले में रखे था 400 कारतूस

locationजबलपुरPublished: Feb 03, 2019 05:51:24 pm

Submitted by:

Premshankar Tiwari

बैग में रखे छिपाकर रखे गए थे कारतूस

Three youths with three weapons and seven live cartridges in bhilwara

Three youths with three weapons and seven live cartridges in bhilwara

जबलपुर। मप्र हाईकोर्ट ने कहा कि विधानसभा चुनाव आचार संहिता के दौरान याचिकाकर्ता की बंदूक जब्त हो गई थी, तो चार सौ कारतूस लेकर जाने का मकसद क्या था? जस्टिस वीपीएस चौहान की सिंगल बेंच ने कहा कि प्रारम्भिक जांच के अनुसार मामला शस्त्रों व कारतूसों के अवैध व्यापार का है। लिहाजा आवेदक को जमानत पर नहीं छोड़ा जा सकता। यह कहते हुए कोर्ट ने चार सौ कारतूस सहित पकड़ाए आरोपी की जमानत अर्जी निरस्त कर दी।

यह है मामला
अभियोजन के अनुसार दिसम्बर 2018 मे भोपाल एसटीएफ को सूचना मिली कि एक व्यक्ति कार में अवैध रूप से कारतूस लेकर जा रहा है। एसटीएफ ने कार्रवाई कर आरोपी भिंड जिले के गोरमी थानांतर्गत बरकापुरा निवासी मुकेश शर्मा को गिरफ्तार किया। उसके कब्जे से 315 बोर के 350 कारतूस व 32 बोर के 50 कारतूस बरामद हुए। वह इन कारतूसों के संदर्भ में कोई स्पष्टीक रण नहीं दे सका। इस पर एसटीएफ ने उसे गिरफ्तार कर उसके खिलाफ आम्र्स एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज कर जेल भेज दिया। आरोपी ने जमानत पाने के लिए जिला अदालत भोपाल में अर्जी दायर की, जो 20 दिसम्बर को खारिज कर दी गई। इस पर हाईकोर्ट में यह अर्जी दायर की गई। अधिवक्ता संकल्प कोचर ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता के पास 315 बोर की बंदूक का लायसेंस है। लिहाजा वह कारतूस रख सकता है। शासकीय पैनल अधिवक्ता संतोष यादव ने इस पर आपत्ति जताई कि उक्त बंदूक चुनाव आचार संहिता के चलते जब्त है। फिर कारतूस ले जाने का औचित्य ही नहीं। तर्क को कोर्ट ने मंजूर कर अर्जी निरस्त कर दी।

अनुकम्पा नियुक्ति पर ये आदेश
एक अन्य मामले में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) ने आयुध निर्माणी बोर्ड के चेयरमैन व जीसीएफ जबलपुर के महाप्रबंधक को निर्देश दिए हैं कि दिवंगत जीसीएफ कर्मी के पुत्र की अनुकम्पा नियुक्तिपर विचार कर उसके आवेदन का निराकरण किया जाए। इसके लिए 60 दिन का समय दिया गया। गोराबाजार निवासी शिवम पिल्ले ने याचिका में कहा कि उसके पिता चंद्रशेखर पिल्ले गन कैरिज फैक्ट्री (जीसीएफ) में भृत्य थे। 21 नवंबर 2015 को उनकी मृत्यु हो गई। उसने अनुकम्पा नियुक्तिके लिए आवेदन दिया। अनिरुद्ध पांडे ने तर्क दिया कि तीन साल बीत जाने के बाद भी इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया। पिता की मृत्यु के बाद याची व उसके परिवार की गुजर-बसर का अन्य विकल्प नहीं है।

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