खिड़की को कर दिया बंद
विंडो नंबर एक में पदस्थ महिला चिकित्सक ने खुद की सुरक्षा के लिए पूरी िव्ंडो को पैक कर दिया गया है। यदि किसी मरीज को पर्चा देना है या चिकित्सक को अपनी परेशानी बताना है तो उसे उकडू बैठकर बोलना और देखना पड़ता है। किसी बुजुर्ग को यह बेहद ही यातना देने जैसा है। लेकिन जिम्मदारों को कोई परवाह नहीं।
कैसे चढ़े सीढियां
घुटनों के दर्द अथवा पैरों से लाचार व्य क्ति को एक सीढ़ी चढ़ना जहां मु श्किल हो वहां प्रथम तल पर बने 6 नंबर काउंटर पर सीढि़या चढ़कर जाने की विवशता पैदा कर दी गई है। न तो कोई लिफ्ट है। जबकि व्यस्था आसानी से नीचे की जा सकती है। ऐसे कई सीढि़यों पर ही बैठकर अपनी बारी आने का घंटो इंतजार करने विविश् होते हैं। जबकि इसकी व्यवस्था नीचे की जा सकती है।
8.30 के बजे आते चिकित्सक
मरीजों का कहना है कि डिस्पेंस्री का समय सुबह 7.30 बजे है लेकिन कई चिकित्सक 8.30 बजे के बाद आते हैं। वहीं 2 बजने के पहले ही काउंटरो को बंद कर दिया जाता है। काउंटर को दोपहर 3 बजे तक संचालित किया जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है। यादवकालोनी डिस्पेंसरी में केवल तीन चिकित्सक डॉ.मीना दुबे, डॉ.मनोहर मेहरा, डॉ.पीएस पांडे उपलब्ध हैं। जबकि यहां चार की पदस्थापना है।
घंटो लाइन में लगने की मजबूरी
सुबह 7 बजे से मरीज आकर घंटो लाइन में लगे रहते हैं। रिटायर उम्र दराज चिकित्सक एक मरीज को देखने और पर्चा बनाने में 15 से 20 मिनिट का समय लगाते हैं। ऐसे हालात में अ धिकांश मरीजों का 2 बजे तक नंबर नहीं आ पाता। डिस्पेंसरी से संबंद्ध हजारों की संख्या में रजिस्टर्ड मरीजों को देखते हुए समय 3 बजे तक किया जाए।
पेंशनरो में नाराजगी
बीएसएनएल पेंशनर एसाेसिएशन के जिला सचिव केएस जाट कहते हैं कि डिस्पेंसरी में अराजक माहौल निर्मित है। चि िकत्सक मर्जी से आते हैं। दवाईयों की मांग करते हैं तो असभ्यता से बात की जाती है। इस संबंध में चिकित्सकों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।
केस-एक
पीडि़त आनंद रैकवार ने कहा कि कल वे काम छोड़कर सुबह 8 बजे से लाइन में लगे रहे। 11 बजे सर्वर डाउन होने की बात पर चिकित्सकों ने नहीं देख। दोबारा दूसरे दिन आए। पर्चा बनवाई फिर से 3 घंटे से अ धिक का समय लगा।
केस-दो
अजय गुप्ता कहते हैं कि एक बार में दवाईयां उपलब्ध नहीं होती है। इलाज के लिए लाइन, फिर दवाईयों के लिए लाईन लगानी पड़ती है। इसके बाद भी आधी दवाई मिलती है बाकी में इंडेट लिख् दिया जाता है।
केस-तीन
राजेश कुमार ने कहा कि पीठ और घुटने के दर्द से झुकने में असमर्थ हैं। जब एक नंबर काउंटर को पूरा बंद करने पर विरोध जताया तो चिकित्सक नाराज हो गई।
यह समस्या
-आएदिन सर्वर डाउन रहना
-चार-चार घंटे लाइन में लगनेे की मजबूरी
-समय पर डॉक्टरों का न आना
-दवाईयों इंडेट रहना
-दो बजे के पहले काउंटर बंद हो जाना
विंडो नंबर एक में पदस्थ महिला चिकित्सक ने खुद की सुरक्षा के लिए पूरी िव्ंडो को पैक कर दिया गया है। यदि किसी मरीज को पर्चा देना है या चिकित्सक को अपनी परेशानी बताना है तो उसे उकडू बैठकर बोलना और देखना पड़ता है। किसी बुजुर्ग को यह बेहद ही यातना देने जैसा है। लेकिन जिम्मदारों को कोई परवाह नहीं।
कैसे चढ़े सीढियां
घुटनों के दर्द अथवा पैरों से लाचार व्य क्ति को एक सीढ़ी चढ़ना जहां मु श्किल हो वहां प्रथम तल पर बने 6 नंबर काउंटर पर सीढि़या चढ़कर जाने की विवशता पैदा कर दी गई है। न तो कोई लिफ्ट है। जबकि व्यस्था आसानी से नीचे की जा सकती है। ऐसे कई सीढि़यों पर ही बैठकर अपनी बारी आने का घंटो इंतजार करने विविश् होते हैं। जबकि इसकी व्यवस्था नीचे की जा सकती है।
8.30 के बजे आते चिकित्सक
मरीजों का कहना है कि डिस्पेंस्री का समय सुबह 7.30 बजे है लेकिन कई चिकित्सक 8.30 बजे के बाद आते हैं। वहीं 2 बजने के पहले ही काउंटरो को बंद कर दिया जाता है। काउंटर को दोपहर 3 बजे तक संचालित किया जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है। यादवकालोनी डिस्पेंसरी में केवल तीन चिकित्सक डॉ.मीना दुबे, डॉ.मनोहर मेहरा, डॉ.पीएस पांडे उपलब्ध हैं। जबकि यहां चार की पदस्थापना है।
घंटो लाइन में लगने की मजबूरी
सुबह 7 बजे से मरीज आकर घंटो लाइन में लगे रहते हैं। रिटायर उम्र दराज चिकित्सक एक मरीज को देखने और पर्चा बनाने में 15 से 20 मिनिट का समय लगाते हैं। ऐसे हालात में अ धिकांश मरीजों का 2 बजे तक नंबर नहीं आ पाता। डिस्पेंसरी से संबंद्ध हजारों की संख्या में रजिस्टर्ड मरीजों को देखते हुए समय 3 बजे तक किया जाए।
पेंशनरो में नाराजगी
बीएसएनएल पेंशनर एसाेसिएशन के जिला सचिव केएस जाट कहते हैं कि डिस्पेंसरी में अराजक माहौल निर्मित है। चि िकत्सक मर्जी से आते हैं। दवाईयों की मांग करते हैं तो असभ्यता से बात की जाती है। इस संबंध में चिकित्सकों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।
केस-एक
पीडि़त आनंद रैकवार ने कहा कि कल वे काम छोड़कर सुबह 8 बजे से लाइन में लगे रहे। 11 बजे सर्वर डाउन होने की बात पर चिकित्सकों ने नहीं देख। दोबारा दूसरे दिन आए। पर्चा बनवाई फिर से 3 घंटे से अ धिक का समय लगा।
केस-दो
अजय गुप्ता कहते हैं कि एक बार में दवाईयां उपलब्ध नहीं होती है। इलाज के लिए लाइन, फिर दवाईयों के लिए लाईन लगानी पड़ती है। इसके बाद भी आधी दवाई मिलती है बाकी में इंडेट लिख् दिया जाता है।
केस-तीन
राजेश कुमार ने कहा कि पीठ और घुटने के दर्द से झुकने में असमर्थ हैं। जब एक नंबर काउंटर को पूरा बंद करने पर विरोध जताया तो चिकित्सक नाराज हो गई।
यह समस्या
-आएदिन सर्वर डाउन रहना
-चार-चार घंटे लाइन में लगनेे की मजबूरी
-समय पर डॉक्टरों का न आना
-दवाईयों इंडेट रहना
-दो बजे के पहले काउंटर बंद हो जाना