30 हजार लोग जुड़े हैं कारोबार से
इन चारों कारोबार में 25 से 30 हजार लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। इनकी अजीविका का मूल साधन यही है। ऐसे में कारीगर या श्रमिक के पास जो पुराना काम है, उसी को पूरा कर रहे हैं। लॉकडाउन में इन चीजों की खपत भी बंद हो गई है। नया उत्पादन भी लगभग बंद पड़ा हुआ है। इसलिए जितना काम घरों मे हो सकता है, लोग उतना ही कर रहे हैं। अब जैसे ही लॉकडाउन खुलेगा, तब पुन: इन कामों में पहले की तरह तेजी आ सकेगी।
इन चारों कारोबार में 25 से 30 हजार लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। इनकी अजीविका का मूल साधन यही है। ऐसे में कारीगर या श्रमिक के पास जो पुराना काम है, उसी को पूरा कर रहे हैं। लॉकडाउन में इन चीजों की खपत भी बंद हो गई है। नया उत्पादन भी लगभग बंद पड़ा हुआ है। इसलिए जितना काम घरों मे हो सकता है, लोग उतना ही कर रहे हैं। अब जैसे ही लॉकडाउन खुलेगा, तब पुन: इन कामों में पहले की तरह तेजी आ सकेगी।
यह है जिले की स्थिति
रेडीमेड गारमेंट- शहर में करीब 300 छोटी एवं बड़ी इकाइयां हैं। इस काम से लगभग 12 हजार लोग जुड़े हुए हैं। इनमें सलवार सूट की कटिंग, सिलाई, एम्ब्रायडरी, डिजाइनिंग आदि काम होता है। फिलहाल घरों में जितना काम हो सकता है वह चल रहा है। जबलपुर गारमेंट एंड फैशन डिजाइनिंग क्लस्टर एसोसिएशन के प्रबंध संचालक श्रेयांस जैन का कहना है कि बाजार बंद हैं तो नया उत्पादन नहीं कर रहे हैं। यहां पर मास्क तैयार किए जा रहे हैं। ऐसे में कारीगरों का काम मिल गया है। शहर में रोजाना 5 से 6 हजार मास्क बन रहे हैं।
पापड़-बड़ी- शहर में पापड़ और बड़ी का बड़ा काम है। इस काम से करीब 8 से 10 हजार महिलाएं जुड़ी हैं। इसके कारखाने भी शहर में हैं। लेकिन 70 से 80 फीसदी काम घरों में होता है। महिलाएं इन कारखानों से कच्चा माल ले जाती हैं और उन्हें बनाकर पुन: यहां जमा करती है। लेकिन इस काम पर भी कोरोना वायरस का व्यापक असर हुआ है।
अगरबत्ती निर्माण- जिले में करीब 15 बड़े उद्योग एवं 100 से अधिक छोटी इकाइयां अगरबत्ती बनाती हैं। इनमें डेढ़ से दो हजार लोगों को काम मिला हुआ है। यह काम भी घरों से ज्यादा होता है। कच्चा माल ले जाकर महिलाएं एवं घर के सदस्य इसे तैयार करते हैं। फिर बड़े उद्योग इन्हें लेकर पैंकिंग का काम करते हैं। इस काम पर भी बड़ा असर हुआ है।
कूलर-अलमारी- शहर में कूलर और आलमारी का कारोबार व्यापक रूप लेता जा रहा है। छोटी-बड़ी 400 से ज्यादा इकाइयां में यह काम होता है। 5 से 6 हजार लोगों को इससे रोजगार मिला हुआ है। अब यह काम केवल घरों में चल रहा है। कारखानों को बंद कर दिया गया है। इसलिए जिनके पास घरों में निर्माण सामग्री है, वहीं इसे कर रहे हैं।
रेडीमेड गारमेंट- शहर में करीब 300 छोटी एवं बड़ी इकाइयां हैं। इस काम से लगभग 12 हजार लोग जुड़े हुए हैं। इनमें सलवार सूट की कटिंग, सिलाई, एम्ब्रायडरी, डिजाइनिंग आदि काम होता है। फिलहाल घरों में जितना काम हो सकता है वह चल रहा है। जबलपुर गारमेंट एंड फैशन डिजाइनिंग क्लस्टर एसोसिएशन के प्रबंध संचालक श्रेयांस जैन का कहना है कि बाजार बंद हैं तो नया उत्पादन नहीं कर रहे हैं। यहां पर मास्क तैयार किए जा रहे हैं। ऐसे में कारीगरों का काम मिल गया है। शहर में रोजाना 5 से 6 हजार मास्क बन रहे हैं।
पापड़-बड़ी- शहर में पापड़ और बड़ी का बड़ा काम है। इस काम से करीब 8 से 10 हजार महिलाएं जुड़ी हैं। इसके कारखाने भी शहर में हैं। लेकिन 70 से 80 फीसदी काम घरों में होता है। महिलाएं इन कारखानों से कच्चा माल ले जाती हैं और उन्हें बनाकर पुन: यहां जमा करती है। लेकिन इस काम पर भी कोरोना वायरस का व्यापक असर हुआ है।
अगरबत्ती निर्माण- जिले में करीब 15 बड़े उद्योग एवं 100 से अधिक छोटी इकाइयां अगरबत्ती बनाती हैं। इनमें डेढ़ से दो हजार लोगों को काम मिला हुआ है। यह काम भी घरों से ज्यादा होता है। कच्चा माल ले जाकर महिलाएं एवं घर के सदस्य इसे तैयार करते हैं। फिर बड़े उद्योग इन्हें लेकर पैंकिंग का काम करते हैं। इस काम पर भी बड़ा असर हुआ है।
कूलर-अलमारी- शहर में कूलर और आलमारी का कारोबार व्यापक रूप लेता जा रहा है। छोटी-बड़ी 400 से ज्यादा इकाइयां में यह काम होता है। 5 से 6 हजार लोगों को इससे रोजगार मिला हुआ है। अब यह काम केवल घरों में चल रहा है। कारखानों को बंद कर दिया गया है। इसलिए जिनके पास घरों में निर्माण सामग्री है, वहीं इसे कर रहे हैं।