सुप्रीम कोर्ट में हिन्दी में निर्णय नहीं आते
पत्रिका से विशेष बातचीत में संक्रांत सानु ने कहा, सुप्रीम कोर्ट में हिन्दी में निर्णय नहीं आते हैं। इस व्यवस्था को बदलने की आवश्यकता है। जिसे उसकी भाषा में न्याय नहीं मिल सकता है, उसके साथ न्याय कैसे होगा? एक भ्रम है कि आर्थिक उन्नति तभी होगी, जब बच्चा अंग्रेजी पढ़ेगा। जबकि, अंग्रेजी माध्यम के कारण हम बहुत पिछड़े हुए हैं। अंग्रेजी माध्यम के कारण हमारे बच्चे विषय नहीं समझ पा रहे हैं। भाषा के रूप में अंग्रेजी पढऩा उचित है, लेकिन इसे माध्यम बना देना गलत है। हिन्दी एवं क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा का विकल्प अनिवार्य होना चाहिए। बीते दस वर्षों में जापान ने विज्ञान के क्षेत्र में 8-10 नोबल अवॉर्ड प्राप्त किया। उनका माध्यम जापानी भाषा है। अपनी भाषा का माध्यम बना लें तो हमारे बच्चे जापान से ज्यादा अवॉर्ड प्राप्त कर लेंगे।
उन्होंने बताया कि चार वर्ष पहले वे दिल्ली में थे। तब किसी ने फोन किया कि आचार्य विद्यासागर उनसे मिलना चाहते थे। उन्होंने जवाब दिया कि वे दिल्ली में हैं और जिन्हें मिलना है वे आ जाएं। तब सानु को आचार्य श्री के बारे में जानकारी नहीं थी। उन्हें बताया गया कि वे दिगम्बर मुनि हैं और वाहन से नहीं चलते हैं। आपको आना होगा। किसी ने उन्हें पुस्तक दी है तो वे आपको बुलवाएं हैं। सानु बताते हैं कि एक बार आचार्य श्री से मिले तो स्नेह, आशीर्वाद और व्यक्तित्व से इतने प्रभावित हुए कि जब समय मिलता है तो दर्शन करने चले आते हैं।