मेडिकल कॉलेज में पुराने इंसीनरेटर के सामने भवन में रसोईघर (पाकशाला) के लिए चार कमरे दिए गए हैं। इन कमरों में भोजन की सामग्री के भंडारण के साथ भोजन पकाया भी जाता है। रसोई के इन कमरों में से तीन कमरे एेसे हैं, जिनमें भोजन सहित बनाने की प्रक्रिया की जाती है। शेष कमरों में कच्ची सामग्री का भंडारण होता है। इस रसोई के कमरों से लगे कमरों में मरीजों का इलाज चलता है। ये कमरे बीच में एक दरवाजे से जुड़े हुए हैं।
रोजाना 1250 मरीजों का भोजन
मेडिकल कॉलेज अस्पताल की इस रसोई में सुबह और शाम को मिलाकर औसतन करीब १२५० मरीजों का भोजन बनाया जाता है। भोजन के साथ सुबह और शाम की चाय एवं नाश्ता भी शामिल है। इसके अलावा जननी सुरक्षा योजना के तहत गर्भवती महिलाओं के लिए गुड़ के लड्डू भी यहां बनाए जाते हैं।
एेसे बनाया जाता है भोजन
एक्सपोज टीम ने मेडिकल रसोई में पाया कि रसोई के नाम पर एक बड़े हॉलनुमा कमरे में भोजन पकाया जाता है। यहां भोजन पकाने के लिए कमरे के दो साइड में गैस बर्नर लगे हंैं। इन पर भोजन पकाया जाता है। साइड में टेबल रखी हुई है, जिस पर रोटियां निकाल कर रखी जाती है। बीच से एक दरवाजा है, जिसके दूसरी ओर मरीजों की मलहम पट्टी होती है। रसोई के अन्य कमरे में स्टोर के साथ वहां पर भोजन पकाने वाली अन्य खाद्य सामग्री रखी जाती है।
25 कर्मचारी संभालते रसोई
ठेकेदार के मुताबिक रसोई में करीब 25 कर्मचारी हैं। ये खाना बनाने से लेकर खाना सप्लाई करते हैं। मेडिकल के सामान्य वार्डों सहित आर्थों, कैंसर, गायनिक आदि वार्डों में भी यहीं से भोजन सप्लाई किया जाता है।
भोजन सप्लाई में गुणवत्ता दरकिनार
रसोई से लेकर वार्डों तक भोजन सप्लाई करने में ठेकेदार ने गुणवत्ता दरकिनार कर दी है। भोजन खुले में ले जाया जाता है, जिससे इससे संक्रमण फैलने का खतरा रहता है। यहां से स्पाइनल वार्ड में भी भोजन पहुंचाया जाता है। यह भोजन यहां की महिलाएं ले जाती हैं। महिलाएं बाल्टियों में रोटी, सब्जी, चावल आदि लेकर जाती है। खुले में भोजन ले जाने से उसमें धूल आदि शामिल हो जाती है, क्योंकि सड़क से होकर जाना पड़ता है। उधर, यह भी देखने आया है कि भोजन सप्लाई करने वाली दो ट्रॉली है, जो वार्डों में जाती है।
44 रुपए में भोजन की थाली
ठेकेदार ज्ञानचंद बेन के मुताबिक भोजन, नाश्ता और लड्डू का ठेके पर है। यहां औसतन करीब १२५० मरीजों के लिए खाद्यान तैयार किया जाता है। भोजन के लिए उसे ४४ रुपए मिलते हैं और गर्भवती महिलाओं के आहार के लिए २३ रुपए मिलते हैं।
भोजन बनाने के बाद पट्टी से ढांका जाता है
रसोई के भीतर रोटी, चांवल आदि बनाने के बाद उसे पट्टियों से ढांका जा रहा है। खाद्य सामग्री ढांकने के लिए ठेकेदार कपड़ा या अन्य बर्तन इस्तेमाल नहीं करता है बल्कि रसोई से लगे पट्टी रूम से पट्टियां लेकर उसे खाद्यान के उपर ढांकता है। जानकारों का कहना है कि पट्टी रूम से रोजाना यह पट्टी लाई जाती है, जबकि कई बार एेसी स्थिति हुई है कि मरीजों को बांधने के लिए पट्टी नहीं रही और उधर इसे खाने पर ढांका जा रहा था।
सीधी बात
ज्ञान सिंह बेन, रसोई ठेकेदार, ब्रजेश कुमार ट्रेडर्स
क्या भोजन ठेके पर बनाया जा रहा है?
हां।
किस दर पर भोजन बनाया जाता है?
४४ रुपए प्रति मरीज।
और गायनिक के लिए?
उसका रेट २३ रुपए है।
रसोई से लगा पट्टी बंधन रूम है, इससे संक्रमण का खतरा नहीं है क्या?
वैसे तो कोई संक्रमण नहीं होता है, लेकिन इसमें हम कुछ कर नहीं सकते हैं। हमें यही जगह दी गई है।
इससे पहले रसोई कहां थी?
वो टूट गई है। नई बन रही है तभी हम वहां जा सकेंगे।
भोजन की गुणवत्ता ठीक नहीं है?
एेसा नहीं है, जिस दर पर ठेका है। उसमें अच्छा भोजन दिया जा रहा है।
भोजन तो खुले में सप्लाई किया
जा रहा है?
कभी हो गया होगा लेकिन हम ध्यान रखते हैं।
खाद्यान पर पट्टी डाली जा रही है?
कपड़ा डालते हैं, लेकिन इसमें खाद्यान में हवा लगती रहती है इसलिए डालते हैं।