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महंगाई अब कलाकारों की कलाकारी भी खा रही है

locationजबलपुरPublished: Jan 15, 2022 08:51:40 pm

Submitted by:

shyam bihari

जबलपुर शहर में अब छोटी कहानियों पर उद्यानों में भी मंचित हो रहे नाटक

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श्याम बिहारी सिंह @ जबलपुर। महंगाई की मजबूरी वाली मार से शहर का कला मंच भी मर्माहत है। शहर में छोटे-छोटे नाट्य दल फिलहाल बड़े मंच या प्रेक्षाग्रह का किराया दे पाने की स्थिति में नहीं हैं। उनके ओहदेदार लोगों से अच्छे सम्बंध नहीं हैं। इसलिए वे उद्यानों आदि खुले मंच पर नाट्य मंच करने की पहल कर रहे हैं। बदलाव यह भी है कि अब छोटी कहानियों पर मंचन की कोशिश की जा रही है। घटते दर्शक, बढ़ती महंगाई। इन सबके बीच नाट्य कलाकर अपनी तरफ से कला को जिंदा रखने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ दिन पहले जबलपुर शहर के भंवरताल उद्यान में युवा कलाकारों का एक दल मंचन करता नजर आया। यूं कहें कि कलाकारों ने खुद ही दर्शकों के बीच दस्तक दी। रंगाभरण थिएटर ग्रुप के कलाकारों ने कला को जिंदा रखने के लिए बड़ा जिगरा दिखाया। लोग क्या कहेंगे, इसकी ङ्क्षचता किए बिना स्वच्छता सेल जबलपुर के सहयोग से हरिशंकर परसाई लिखित कहानी ‘एक फिल्म कथाÓ का मंचन किया। अक्षय सिंह ठाकुर के निर्देशन में नमन अंशुल, तरुण, पूजा, ज्योति, पल्लवी, नूपुर, अमन, संदीप, रोहित, सोहेल, जतिन व अन्य ने शानदार और बेहद गम्भीर अभिनय से संदेश दिया। इसका प्रबंधन निमिष माहेश्वरी ने किया था। मंचन के जरिए स्वचछता बनाए रखने की शपथ ली गई। मंचन देखने के लिए बम्पर भीड़ नहीं उमड़ी। फिर भी कलाकारों ने अपनी बात सलीके से रखी। साथ में यह संदेश भी दिया कि भंवरताल के बगल में ही कल्चरल स्ट्रीट पर उन्होंने अपना आयोजन क्यों नहीं किया? प्रशासन से बिना कुछ कहे, कलाकारों ने अपना दर्द बयां कर दिया। उन्होंने मूक सवाल किया कि आखिर कल्चरल स्ट्रीट बनाए जाने का मकसद क्या है? सवाल यह भी कि मकसद पूरा करने के लिए प्रशासन के जिम्मेदार कर क्या रहे हैं?

किराया तेजी से बढ़ा है
अक्षय सिंह ठाकुर 12 साल से रंगकर्म में जुड़े हैं। मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय भोपाल से प्रशिक्षित तथा यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद से नाट्य कला में एमए हैं। वे शहर में रंगाभरण थियेटर ग्रुप से जुड़े हैं। इस थियेटर में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (दिल्ली), मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय (भोपाल), फाइन आर्ट कॉलेज जबलपुर, यक्षगान केंद्र कर्नाटक आदि संस्थाओं से प्रशिक्षित कलाकार इस समूह में काम कर रहे हैं। अक्षय कहते हैं कि भंवरताल उद्यान में मंचन उन लोगों ने खुशी मन से नहीं किया। असल में अब सारे नाटकों को प्रेक्षाग्रह में करना असम्भव है। प्रेक्षाग्रहों का किराया तेजी से बढ़ा है। कल्चरल स्ट्रीट में नाटक उन जैसों के लिए सपने सरीखे जैसी बात हो गई है। कोरोना काल में रंगकर्मी जीविका चलाने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। पहले रंगमंच के लिए दुकानदार या व्यापारी स्पॉन्सरशिप देते थे। लेकिन, अब यह भी बंद हो गई है।

प्रशासनिक स्तर पर मदद नहीं
संतोष राजपूत विवेचना रंग मंडल से जुड़े हैं। 22 साल से रंगमंच में सक्रिय हैं। मूलत: निर्देशन और अभिनय। 50 से अधिक नाटकों में अभिनय, नेपथ्य, मंच निर्माण और प्रकाश संयोजन किया है। वे रंगकर्म के हालातों से चिंतित हैं। परेशान भी हैं। वे कहते हैं कि रंगकर्म के क्षेत्र में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली, भारतेंदु नाट्य अकादमी लखनऊ, मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय भोपाल से शहर की युवा प्रतिभाएं प्रशिक्षण लेके आई हैं। लेकिन, इन्हें अवसर या मंच नहीं मिल पा रहा। इसके अलावा शहर के जितने भी प्रेक्षागृह हैं, उनका किराया इतना ज्यादा है कि रंगकर्मी वहां अभ्यास नहीं कर पाते। जहां किराया कम है, वहां संसाधन नहीं हैं। युवाओं के प्रोत्साहन के लिए प्रशासन स्तर पर किसी तरह की मदद नहीं है। शहर में रंगकर्म को कोई जीवन यापन का साधन बनाने के पहले कई बार सोचने को मजबूर होता है। ऐसे में कला को जिंदा रखना सबकी जिम्मेदारी है।

अभ्यास की जगह का अकाल
साहित्य, कला के मर्मज्ञ और इस क्षेत्र में लम्बे समय से काम कर रहे पंकज स्वामी भी शहर के रंगमचीय हालातों से निराश हैं। वे चिंतित इस बात को लेकर भी हैं कि रंगमंच से जुड़े नवोदित कलाकारों के लिए ये दिन अच्छे नहीं हैं। उनके अनुसार सबसे बड़ी समस्या तो यही है कि नाट्य प्रस्तुति के पहले अभ्यास करने के लिए शहर में जगह ही नहीं है। उन्हें यह बात भी कचोटती है कि शहर में रंगमंच का शानदार इतिहास है। फिर भी प्रशासनिक स्तर पर कुछ खास नहीं किया जाता।

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