बात ब्लैक फंगस के इलाज की है। बता दें कि इस भयावह बीमारी से जीवन रक्षा के लिए एक इंजेक्शन निहायत जरूरी है। अच्ची खबर ये है कि ये इंजेक्शन अब जबलपुर में बनने लगा है। ऐसे में अब ये इंजेक्शन आसानी सुलभ हो सकेगा और इसकी कीमत भी अब तक इस्तेमाल किेए जा रहे इंजेक्शन की तुलना में काफी कम होगी।
कंपनी के को-फाउंडर रवि सक्सेना, डॉ. रवि सक्सेना और पार्टनर नीटी भारद्वाज ने बताया कि ब्लैक फंगस की दवा एम्फोटेरेसिन-बी का इमलशन (emulsion) फार्मेट में इंजेक्शन तैयार किया है। कंपनी का ये खुद का प्रोडक्ट है। रॉ-मटेरियल से लेकर उत्पादन का काम कंपनी ने खुद किया है। एक वायल इंजेक्शन 50 एमजी (10 एमएल) का होगा। कीमतों का खुलासा अभी नहीं किया है। लेकिन यह तीन हजार के लगभग होने की संभावना है। मई में ही इस कंपनी को इसका लाइसेंस मिला था।
कंपनी के को-फाउंडर रवि सक्सेना के मुताबिक जबलपुर सहित महाकौशल में अब कोविड पोस्ट होने वाले फंगल इंफेक्शन के इलाज में इंजेक्शन की कमी नहीं होगी। लोगों को वाजिब कीमत पर इंजेक्शन उपलब्ध रहेगा। कंपनी इंजेक्शन सरकारी अस्पतालों और थोक दवा दुकानों पर सप्लाई करेगी। यहां बता दें कि जबलपुर मेडिकल कॉलेज में 200 से अधिक मरीज सामने आ चुके हैं। अब भी कई मरीजों का इलाज जारी है। इस बीमारी के इलाज में सबसे बड़ी बाधा इंजेक्शन की कमी थी।
रेवा क्योर लाइफ साइंसेज कंपनी के एमडी रवि सक्सेना के मुताबिक, ब्लैक फंगस के बढ़ते मामले और इसके इंजेक्शन की देश में भारी कमी को देखते हुए उन्होंने इमरजेंसी में इसके उत्पादन का निर्णय लेते हुए लाइसेंस लिया था। उनकी कंपनी एंटी कैंसर का इंजेक्शन बनाती है। देश की कई बड़ी व नामी कंपनियों से उनका टाइ अप है। उनकी कंपनी WHO एंड यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी से अप्रूव्ड है। अब कंपनी ब्लैक फंगस भी बनाने लगी है। इसके उत्पादन में जबलपुर सांसद राकेश सिंह और डॉ. जितेंद्र जामदार ने लाइसेंस दिलाने से लेकर रॉ मटेरियल उपलब्ध कराने में काफी मदद की।
फंगस से पीड़ित मरीजों के लिए एम्फोटेरेसिन-बी इंजेक्शन 70 से 80 एमएल रोज लगाने पड़ते हैं। एक मरीज को 30 से 40 इंजेक्शन की जरूरत पड़ती है। एक वायल 50 एमजी (10 एमएल) का होता है। जबलपुर मेडिकल कॉलेज के ईएनटी विभाग में पदस्थ डॉ. सौम्या सैनी के मुताबिक, मरीजों के इलाज में इस इंजेक्शन का कोई विकल्प नहीं है। जबलपुर में इसके तैयार होने से इस क्षेत्र के मरीजों को राहत मिलेगी।