scriptहिन्दी के लिए इस शहर ने बहुत कुछ किया है, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, आचार्य विनोबा भावे अक्सर आते थे यहां | jabalpur city has done a lot for Hindi | Patrika News

हिन्दी के लिए इस शहर ने बहुत कुछ किया है, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, आचार्य विनोबा भावे अक्सर आते थे यहां

locationजबलपुरPublished: Sep 14, 2020 08:44:55 pm

Submitted by:

shyam bihari

जबलपुर शहर के ब्यौहार हाउस व पैलेस में होता था विख्यात साहित्यकारों को होता था संगम
 

हिन्दी के लिए इस शहर ने बहुत कुछ किया है, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, आचार्य विनोबा भावे अक्सर आते थे यहां

hindi divas

जबलपुर। हिन्दी की व्याकरण रचना से लेकर उसे तराशने में संस्कारधानी का बड़ा योगदान है। स्वतंत्रता संग्राम के दौर से लेकर देश की आजादी के बाद भी यहां हिन्दी के साधकों का संगम होता रहा। हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिलाने वाले ब्यौहार राजेंद्र सिंह का निवास ‘ब्यौहार हाउसÓ और हनुमानताल स्थित ‘ब्यौहार पैलेसÓ मध्यभारत में हिन्दी के प्रमुख केंद्र के रूप में विख्यात थे। यहां देश के विख्यात साहित्यकारों का यहां संगम होता था। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, आचार्य विनोबा भावे से लेकर देशभर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार ब्यौहार हाउस आते थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी यहां कई बार आए। हाईकोर्ट का भवन बन रहा था। इसके पीछे की ओर ब्यौहार हाउस था। घमापुर चौराहा से मॉडल हाईस्कूल तक करीब 50 एकड़ में ब्यौहार हाउस का बगीचा था। इसी के नाम पर इलाके का नामकरण ब्यौहारबाग हुआ। पहले बगीचे की जमीन परिवार के करीबी लोगों को दी गई। कई सार्वजनिक कार्यों के लिए भी जमीन उपलब्ध कराई गई। ब्यौहार हाउस आज भी स्थित है। यहां शुरुआती कुछ वर्षों तक मॉडल स्कूल का संचालन हुआ। ठगों के आतंक से जबलपुर को मुक्ति दिलाने के लिए ब्रिटिश शासनकाल में मुहिम चलाई गई। शुरुआती दौर में ठगों को सजा देने के लिए इसी ब्यौहार हाउस में रखा जाता था।

संदर्भ के तौर पर होता है ग्रंथों का उपयोग

ब्यौहार राजेंद्र सिंह के पोते डॉ. अनुपम सिन्हा बताते हैं कि विश्वविद्यालयों में रिसर्च में संदर्भ के तौर पर उनके ग्रंथों का उपयोग किया जाता है। उन्होंने हिन्दी के विस्तार पर लगातार काम किया। धर्म, सम्प्रदायों के बीच समन्वय को लेकर काफी लिखा। ‘आलोचना के सिद्धांतÓ उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है। संस्कारधानी के सेठ गोविंददास ने संसद में हिन्दी की आवाज बुलंद की। उस दौर में बहुत कम सांसद हिन्दी में संवाद करते थे। सेठ गोविंददास सहित कुछ अन्य सांसदों की पहल पर धीरे-धीरे लोकसभा व राज्यसभा में हिन्दी में चर्चा होने लगी। हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने सहित हिन्दी को सरकारी कामकाज की भाषा बनाने के लिए उन्होंने हरसम्म्भव प्रयास किया। वे बड़े नाटककार भी थे। उन्होंने कई प्रसिद्ध नाटक लिखे। जीवनभर अपनी लेखनी से हिन्दी साहित्य की सेवा करते रहे। इतिहासकारों के अनुसार संस्कारधानी में भी स्वाध्याय और साहित्य की सेवा कर कामता प्रसाद गुरु व रामेश्वर गुरु ने हिन्दी व्याकरण के विकास में योगदान किया।

ट्रेंडिंग वीडियो