जबलपुर। कोरोना वायरस को हराने के लिए संस्कारधानी में जागरुकता बढ़ रही है। कफ्र्यू के दौरान लोगों ने घर को मंदिर बना लिया। नवरात्र के नौ दिन के व्रत में संसाधनों के अभाव में अनेक परिवारों ने व्रत के बजाय पूजा पर ध्यान दिया है। क्योंकि, व्रत में पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिलने पर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आने की आशंका रहती है। कफ्र्यू के दौरान शहर में फल व अन्य सामग्री की उपलब्धता में कमी आने के बाद लोगों ने जागरुकता का परिचय दिया है।
नवरात्र में दर्शन पूजन प्रतिबंधित है और कलश स्थापना में पर्याप्त पूजन सामग्री भी उपलब्ध नहीं हो सकी। ऐसी स्थिति में लोगों ने आस्था पूवर्क उपलब्ध संसाधनों में आदिशक्ति की साधना शुरू की। पिछले वर्षों की तरह घरोंं में पुरोहितों का वैदिक मंत्रोच्चार भी नहीं गूंज रहा है। जबकि, लोग अपने परिवार के साथ घर की ड्योढ़ी में रह रहे हैं। परिस्थिति के अनुसार भक्तों ने भगवती से क्षमा याचना कर प्रार्थना की। घरों में कभी लोग सपरिवार आरती, पूजन कर रहे हैं तो कभी वीडियो में भजन और मंत्रोच्चार गंूज रहा है।
ज्योतिर्विद जनार्दन शुक्ला के अनुसार नवरात्र में कोरोना के कारण पिछले वर्षों जैसी स्थिति नहीं है। साधना बहुत अच्छी हो रही है। नगर पुरोहितों ने यजमानों को सुझाव दिया कि घर में पर्याप्त फलाहार उपलब्ध नहीं है तो नौ दिन न करें। जबकि, सायंकाल में प्रतिदिन एक बार में एक अनाज ग्रहण करने का सुझाव दिया गया है। यह भी व्रत है। इस बार लोग घरों में हैं और सुबह से शाम तक भक्ति कर रहे हैं। ज्योतिर्विद डॉ. चंद्रशेखर शास्त्री के अनुसार उनके यजमान परिवारों के लोगोंं ने नौ दिन का व्रत छोड़ा है लेकिन वे शक्ति की उपासना में तल्लीन हैं। घरों के लोग ही धार्मिक ग्रंथों का पाठ कर रहे हैं। लोगों ने परिस्थिति के अनुसार अच्छा प्रयास किया है। व्रत का विधान है लेकिन विषम स्थिति में पूजन का महात्म अधिक है।