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जबलपुर

अब भी जिंदा है ‘महाभारत’ का ये योद्धा, इन जंगलों में है भटकता

अश्वत्थामा के भटकने के समाचार जब-तब आते रहते हैं। महाभारत काल से अब तक इनके जंगलों में यहां-वहां घूमने की जानकारियां मिलती हैं।

जबलपुरOct 01, 2015 / 11:38 am

आभा सेन

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जबलपुर। अश्वत्थामा के भटकने के समाचार जब-तब आते रहते हैं। महाभारत काल से अब तक इनके जंगलों में यहां-वहां घूमने की जानकारियां मिलती हैं। हालांकि इस संबंध में कितना सच है कितना मिथक ये कहा नहीं जा सकता। 

कहा जाता है कि मध्यप्रदेश के ही जबलपुर शहर के ग्वारीघाट (नर्मदा नदी) के किनारे भी अश्वत्थामा भटकते रहते हैं। इसके अलावा असीरगढ़ किले में भी इनके भटकने की जानकारी मिलती है। मंडला जिले में भी कुछ साल पहले तक इनके भटकने की सूचना आई थी। बताते हैं कि अश्वत्थामा के माथे से रिसते घाव की वजह से वह जंगलों में चीखता रहता है।
पागल हो जाता है देखने वाला

स्थानीय निवासियों के अनुसार कभी-कभी वे अपने मस्तक के घाव से बहते खून को रोकने के लिए हल्दी और तेल की मांग भी करते हैं। कई लोगों ने इस बारे में अपनी आपबीती भी सुनाई। किसी ने बताया कि उनके दादा ने उन्हें कई बार वहां अश्वत्थामा को देखने का किस्सा सुनाया है। तो किसी ने कहा- जब वे मछली पकडऩे वहां के तालाब में गए थे, तो अंधेरे में उन्हें किसी ने तेजी से धक्का दिया था। शायद धक्का देने वाले को उनका वहां आना पसंद नहीं आया। गांव के कई बुजुर्गों की मानें तो जो एक बार अश्वत्थामा को देख लेता है, उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है।
द्वापरयुग में जन्मे थे

अश्वत्थामा महाभारत काल अर्थात द्वापरयुग में जन्मे थे। उनकी गिनती उस युग के श्रेष्ठ योद्धाओं में होती थी। वे गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र व कुरु वंश के राजगुरु कृपाचार्य के भांजे थे। द्रोणाचार्य ने ही कौरवों और पांडवों को शस्त्र विद्या में पारंगत बनाया था।अश्वत्थामा भी अपने पिता की भांति शास्त्र व शस्त्र विद्या में निपुण थे। पिता-पुत्र की जोड़ी ने महाभारत के युद्ध के दौरान पांडवों की सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया था।

पांडव सेना को हतोत्साहित देख श्रीकृष्ण ने द्रोणाचार्य का वध करने के लिए युधिष्ठिर से कूटनीति का सहारा लेने को कहा। इस योजना के तहत युद्धभूमि में यह बात फैला दी गई कि अश्वत्थामा मारा गया है।
श्रीकृष्ण ने दिया था श्राप

जब द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की मृत्यु की सत्यता जाननी चाही तो युधिष्ठिर ने जवाब दिया कि अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो वा (अश्वत्थामा मारा गया है, लेकिन मुझे पता नहीं कि वह नर था या हाथी)। यह सुन गुरु द्रोण पुत्र मोह में शस्त्र त्याग कर युद्धभूमि में बैठ गए और उसी अवसर का लाभ उठाकर पांचाल नरेश द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने उनका वध कर दिया।

पिता की मृत्यु ने अश्वत्थामा को विचलित कर दिया। महाभारत के पश्चात जब अश्वत्थामा ने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए पांडव पुत्रों का वध कर दिया तथा पांडव वंश के समूल नाश के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया, तब भगवान श्री कृष्ण ने परीक्षित की रक्षा कर दंड स्वरुप अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि निकालकर उन्हें तेजहीन कर दिया और युगों-युगों तक भटकते रहने का शाप दिया था।
शिव मंदिर में करते है पूजा-अर्चना

असीरगढ़ किले में स्थित तालाब में स्नान करके अश्वत्थामा शिव मंदिर में पूजा-अर्चना करने जाते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि वे उतावली नदी में स्नान करके पूजा के लिए यहां आते हैं। आश्चर्य कि बात यह है कि पहाड़ की चोटी पर बने किले में स्थित यह तालाब बुरहानपुर की तपती गरमी में भी कभी सूखता नहीं। तालाब के थोड़ा आगे गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर है। मंदिर चारो तरफ से खाइयों से घिरा है। किंवदंती के अनुसार इन्हीं खाइयों में से किसी एक में गुप्त रास्ता बना हुआ है, जो खांडव वन ( मध्यप्रदेश के खंडवा जिला) से होता हुआ सीधे इस मंदिर में निकलता है।
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