वर्ष 1996 में सबसे अधिक 38 प्रत्याशी
अब तक के लोकसभा चुनाव पर नजर डाले तो वर्ष 1996 में सबसे अधिक 38 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। वहीं सबसे कम 1977 में थे। जब इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में संयुक्त विपक्ष की तरफ से कांग्रेस के मुकाबले में सिर्फ एक प्रत्याशी उतारा गया था। पहले आम चुनाव की बात करें तो दोनों लोकसभा से 10 प्रत्याशी मैदान में थे। मतदाताओं ने चार प्रतिशत से कम किसी को मत नहीं दिया। दूसरे आम चुनाव में भारतीय जनसंघ 10 प्रतिशत के लगभग मत पाकर तीसरे स्थान पर रहा। तीसरे आम चुनाव में भी तीसरे पायदान पर रहे प्रत्याशी को 11 प्रतिशत से अधिक मत मिले। ये सिलसिला 1980 तक चलता रहा।
भाजपा के अभ्युदय के बाद दो दलीय हो गई लड़ायी
वर्ष 1984
कुल प्रत्याशी-14
कांग्रेस-61.43 प्रतिशत
बीजेपी-32.18 प्रतिशत
12 प्रत्याशी-01 प्रतिशत से कम
वर्ष-1989
कुल प्रत्याशी-26
भाजपा-55.49 प्रतिशत
कांग्रेस-34.82 प्रतिशत
निर्दलीय-3.32 प्रतिशत
23 प्रत्याशी-01 प्रतिशत से कम
वर्ष -1991
कुल प्रत्याशी-25
कांग्रेस-44.20 प्रतिशत
भाजपा-42.47 प्रतिशत
जेडी-7.12 प्रतिशत
बीएसपी-1.88 प्रतिशत
निर्दलीय-1.01 प्रतिशत
20 प्रत्याशी-01 प्रतिशत से कम
वर्ष-1996
कुल प्रत्याशी-38
भाजपा-49.09 प्रतिशत
कांग्रेस-31.17 प्रतिशत
बीएसपी-6.33 प्रतिशत
एआइआइसी(टी)-5.35 प्रतिशत
34 प्रत्याशी-01 प्रतिशत से कम
वर्ष-1998
कुल प्रत्याशी-10
भाजपा-46.86 प्रतिशत
कांग्रेस-33.75 प्रतिशत
जेडी-9.06 प्रतिशत
बीएसपी-7.12 प्रतिशत
निर्दलीय-2.33
05 प्रत्याशी-01 प्रतिशत से कम
वर्ष-1999
कुल प्रत्याशी-10
भाजपा-56.88 प्रतिशत
कांग्रेस-36.12 प्रतिशत
बीएसपी-4.58 प्रतिशत
एनसीपी-1.20 प्रतिशत
06 प्रत्याशी-01 प्रतिशत से कम
वर्ष-2004
कुल प्रत्याशी-14
भाजपा-54.54 प्रतिशत
कांग्रेस-37.12 प्रतिशत
बीएसपी-2.96 प्रतिशत
निर्दलीय-1.20 प्रतिशत
10 प्रत्याशी-01 प्रतिशत से कम
वर्ष-2009
कुल प्रत्याशी-11
भाजपा-54.29 प्रतिशत
कांग्रेस-37.56 प्रतिशत
बीएसपी-3.33 प्रतिशत
निर्दलीय-1.14 प्रतिशत
07 प्रत्याशी-01 प्रतिशत से कम
वर्ष-2014
कुल प्रत्याशी-15
भाजपा-56.34 प्रतिशत
कांग्रेस-35.52 प्रतिशत
गोंगपा-5.11 प्रतिशत
बीएसपी-2.15 प्रतिशत
11 प्रत्याशी-01 प्रतिशत से कम
प्रदेश की राजनीति में ये अहम बदलाव था। भाजपा के अभ्युदय के साथ ही लड़ायी भी सिमटती चली गई। 1984 में 16 प्रत्याशियों में 14 को एक प्रतिशत से कम वोट मिला। 89 के चुनाव में 3.32 प्रतिशत वोट पाकर निर्दलीय तीसरे स्थान पर रहा। 1991 में तीसरा स्थान जनता दल को मिला। उसके प्रत्याशी को 7.12 प्रतिशत वोट मिले। 96 में बसपा तो 98 में फिर से जद तीसरे स्थान पर रहा। 99 से लेकर 2009 तक तीसरे नम्बर की पार्टी बसपा रही, लेकिन उसके प्रत्याशी को पांच प्रतिशत से कम ही वोट तीनों बार मिले। 2014 में गोंगपा के प्रत्याशी ने पांच प्रतिशत से अधिक मत पाकर बसपा को चौथे पायदान पर धकेल दिया।
वोटकटवा की छवि बदलने को बेताब है तीसरा दल
जबलपुर लोकसभा चुनाव में इस बार तीसरे दल के रूप में बसपा, गोंगपा सहित कई पार्टी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने की रणनीति तैयार करने में जुटी हैं। जिससे वे अपनी वोटकटवा की छवि बदल सके। बसपा पहले ही प्रदेश में सपा से गठबंधन कर चुकी है। वहीं गोंगपा भी अपना प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है।