जबलपुर

जम्मू कश्मीर में 370 हटाने से जुड़ा जबलपुर का ये केस, सीताराम येचुरी को इसी आधार पर मिली छूट- देखें वीडियो

सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनाई दी जबलपुर के एडीएम विरुद्ध शिवाकांत शुक्ला केस की गूंज, आपातकाल में गिरफ्तारियों को चुनौती देने व सुको के ऐतिहासिक फैसले के चलते प्रसिद्ध हुआ था मामला

जबलपुरAug 30, 2019 / 12:35 pm

Lalit kostha

jammu kashmir 370 35a: supreme court judgement on sitaram yechury

जबलपुर/ आपातकाल में नागरिकों की निजता के अधिकार के हनन को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के जरिए हाईकोर्ट में चुनौती देने का संवैधानिक प्रावधान भी निलम्बित कर दिया गया था। शिवाकांत शुक्ला के मामले में इस विषय पर जबलपुर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए परस्पर विरोधी फैसलों ने 40 साल तक कानूनविदों को मनन के लिए मजबूर किया। जम्मू-कश्मीर से संविधान की धारा ३७० में संशोधन के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान 4२ साल बाद बुधवार को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की गूंज सुनाई दी। वामपंथी नेता सीताराम येचुरी की याचिका की सुनवाई के दौरान इस केस का हवाला दिया गया।

 

 

आपातकाल में छिन गए थे अधिकार
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सरकार ने 25 जून, 1975 को इमरजेंसी के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकार स्थगित कर दिए थे। देशभर में नजरबंदी का दौर शुरू हो गया। कुछ गिरफ्तार लोगों ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं दायर कर हिरासत में लिए गए व्यक्तियों की रिहाई के लिए प्रार्थना की। जबकि, उस समय सरकार किसी की जान भी ले लेती तो भी उसके खिलाफ कोई कोर्ट में नहीं जा सकता था। ऐसे मामलों को सुनने के कोर्ट के अधिकार को स्थगित कर दिया गया था।

लगाई बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका
जबलपुर के अधिवक्ता शिवाकांत शुक्ला ने मप्र हाईकोर्ट में इस अधिकार को स्थगित करने के खिलाफ बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की। 1976 में इनका फैसला देते हुए जबलपुर हाईकोर्ट सहित देश के 9 हाईकोर्ट ने कहा, इमरजेंसी के बावजूद बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं दायर करने का अधिकार कायम रहेगा।पांच जजों ने बदला था फैसलाहाईकोर्ट के इस निर्णय के खिलाफ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से मौलिक अधिकारों को निलम्बित करने के सरकार के फैसले को उचित बताया। 1976 का यह ऐतिहासिक केस एडीएम, जबलपुर बनाम शिवाकांत शुक्ला मुकदमे के नाम से चर्चित हुआ। सुको की उस संवैधानिक बेंच के सदस्य थे चीफ जस्टिस एएन राय, जस्टिस एचआर खन्ना, एमएच बेग, वायवी चंद्रचूड़ और पीएन भगवती। अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने जिन आधारों पर राइट टू प्राइवेसी पर फैसला दिया, उनमें एडीएम जबलपुर का मामला अहम था। नौ जजों की फुल बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के 1976 में दिए गए फैसले को खारिज कर दिया।

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