साइंस कॉलेज के प्रोफेसर ने किया दावा, करोड़ों वर्ष पहले विशालकाय जीवों का घर रहीं ये वादियां
रवि कुमार सिंह @ जबलपुर। जबलपुर साइंस कॉलेज के प्रोफेसर डीके देवलिया का दावा है कि करोड़ों वर्ष पूर्व इस विशालकाय जीवों का घर रहा जबलपुर शहर कभी अफ्रीका से सीधा जुड़ा रहा। इतना ही नहीं ये डायनासोर जबलपुर से अफ्रीकी जंगलों तक सैर-सपाटा करते थे। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया भी जा सकता है कि पिछले 6-7 दशक में शहर के कई हिस्सों से जीवाश्म मिले हैं। इसमें शहर के पास स्थित घुघवा नेशनल पार्क तो जीवाश्मों का खजाना है। यहां अब तक वृक्षों व पशुओं के कुल 31 प्रजातियों को चिंहित किया जा चुका है। ये जीवाश्म लाखों वर्ष पुराने हैं।
अफ्रीका का हिस्सा थी नर्मदा वैली
जांच में अफ्रीका व नर्मदा क्षेत्र के बीच समानता मिलने के बाद से ही वैज्ञानिक इस क्षेत्र को अफ्रीका का हिस्सा मानते हैं। पुरातत्वविभाग के डिप्टी डायरेक्टर बतातेहैं कि लगभग 40-50 वर्ष पहले इंदौर केबाघ की गुफाओं में मिले समुंद्र केअवशेष (नमकदार या खरा पानी) व रीवाके आस-पास मिले खरा पानी के अवशेषसे पता चलता है कि ये क्षेत्र कभीसमुंद्र हुआ करता था। गुजरात में भीखरा पानी के अवशेष मिले हैं। इस तरह अनुमान लगाया जा सकता है कि किसी बड़ी भगौलिक घटना की वजह से यह क्षेत्र अफ्रीका से टूटकर बहते हुए यहां पहुंचा हो।
यहां मिले डायनासोर के जीवाश्म
प्रो.डीके देओलिया बताते हैं कि सन्1950 के लगभग नरसिंहपुर के भुतड़ागांव में डायनासोर के अवशेष मिले,1990 के लगभग छुई हिल (जिसके आसपासबर्न फैक्ट्री थी) में डायनासोर कापूरा कंकाल मिला व 2005 के आस-पासजीपीएस फैक्ट्री स्थित पाट बाबा मंदिरके गेट पर समूह में डायनासोर केअंडे मिले। वे बताते हैं कि मंदिर केपास समूह में मिले अंडे तत्कालिनकमिश्नर द्वारा वहीं पर संरक्षित कराएगए हैं, जबकि छुई हिल पहाड़ी पर मिलाडायनासोर का कंकाल कलकत्ता केम्यूजियम में रखा गया है।
ग्रहों की उत्पत्ति का राज
शहर की प्राचीनता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां पृथ्वी की उत्पत्ति के समय की चीजे विद्यमान हैं। हाल ही में मैंने लम्हेटा घाट के पास एेसी चट्टाने देखीं जो अब मिट्टी में तब्दील हो रही हैं। हाथ के धक्केसे भी ये चट्टानें टूट जाती हैं। सच कहा जाए तो पृथ्वी व ग्रहों की उत्पत्ति के राज इस शहर में मौजूद हैं।
-राजकुमार गुप्ता, इतिहासकार जबलपुर