अस्पताल की व्यवस्थाओं पर पडऩे लगा था असर
उल्लेखनीय है कि जूडा पिछले 6 दिनों से हड़ताल पर था। इससे अस्पताल की व्यवस्थाओं पर असर पडऩे लगा था। इससे पहले नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज प्रशासन के नोटिस के बाद जूनियर्स डॉक्टर्स ने शुक्रवार को हॉस्टल छोड़ दिया था। कॉलेज के तीनों पीजी हॉस्टल शाम तक खाली हो गए थे।
जानकारी के अनुसार कॉलेज प्रशासन की सख्ती के बाद पीजी छात्रों ने भी हॉस्टल के रूम खाली कर दिए थे लेकिन हड़ताल समाप्त करने से इनकार कर दिया था। शुक्रवार को ओपीडी में पंजीकृत मरीजों की संख्या औसत से तकरीबन आधी रही। जूडॉ के नहीं होने से रूटीन सर्जरी की वेटिंग एक सप्ताह में 150 को पार कर गई। इमरजेंसी के अलावा रुटीन उपचार में भर्ती मरीजों को परेशानी हो
रही थी।
बर्खास्त नर्सें बहाल
मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने शुक्रवार को एक नाटकीय घटनाक्रम में स्वशासी नर्सेस एसोसिएशन की बर्खास्त चार पदाधिकारियों को बहाल करने के निर्देश जारी किए थे। इसके फौरन बाद नर्सेस ने आमद दर्ज कराई थी। इसमें एसोसिशन की जिला अध्यक्ष लक्ष्मी झारिया सहित मंजू त्रिपाठी, सुनीला ईशादीन, बसंती नेताम शामिल थी। उधर, स्वास्थ्य विभाग की ओर से नरसिंहपुर से रिलीव किए गए दो और जबलपुर के एक डॉक्टर ने शुक्रवार को कॉलेज में उपस्थिति दर्ज कराई थी।
इसलिए पड़ रहा था फर्क
फस्र्ट इयर में जूडॉ की जिम्मेदारी अस्पताल के वार्ड में होती थी। महीने में सिर्फ एक दिन अवकाश मिलता था। इन जूडॉ पर चौबीस घंटे मरीजों की देखरेख की जिम्मेदारी होती थी।
सेकंड इयर के जूडॉ सुबह 9 बजे से दोपहर 2 बजे तक ओपीडी में मरीजों की जांच करते थे। इसके बाद वार्ड में मरीजों को भर्ती कराने समेत रूटीन चेकअप करते थे। इमरजेंसी में रात में भी इन्हें अस्पताल में मरीजों को देखने के लिए कॉल किया जाता था।
थर्ड इयर के जूडॉ सुबह से दोपहर तक ओपीडी में मरीजों की जांच करते थे। ऑपरेशन के लिए मरीजों को चिह्नित करने के साथ ही सर्जरी से पहले की तैयारी भी जूडॉ करते थे। कंसल्टेंट सुबह 11 से 2 बजे के बीच रहते थे।