स्वास्थ्य विभाग की योजना के तहत ही एक साल में मेडिकल और विक्टोरिया अस्पताल में सिर्फ 22 कॉक्लियर इम्प्लांट हुए है। इस अवधी में प्राइवेट अस्पताल में स्वास्थ्य विभाग के अनुदान से सौ से अधिक कॉक्लियर ऑपरेशन हुए। प्रति ऑपरेशन साढ़े छह लाख रुपए सरकारी अनुदान का भुगतान निजी अस्पताल को किया गया। जबकि सरकारी अस्पताल में करने पर हर केस पर सरकार को कम से कम दो लाख रुपए तक की बचत होती है।
प्रति एक हजार में तीन बच्चों को बीमारी
चिकित्सकों के अनुसार कुछ बच्चों के कान और दिमाग की नस आपस में जुड़ी हुई नहीं होती है। इससे वे आवाज सुन नहीं पाते और बोलने में असमर्थ होते हंै। प्रति एक हजार में तीन बच्चों को यह समस्या होती है। कॉक्लियर इम्प्लांट और फिर स्पीच थैरेपी के बाद बच्चे सुनने और बोलने लगते हैं।
इस पेंच से पहुंच नहीं रहे केस
बीमारी दूर करने के लिए मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना सहित अन्य सरकारी योजनाएं हैं। सूत्रों के अनुसार सरकारी स्वास्थ्य केंद्र और अस्पतालों में चिह्नित बच्चों का प्रकरण स्वास्थ्य विभाग को भेजा जाता है। संयुक्त संचालक स्तर पर बैठक में तय होता है कि ऑपरेशन कहां होगा। मेडिकल अस्पताल में जांच में पीडि़त मिलने पर भी सर्जरी से पहले उसके सम्बंधित जिला अस्पताल से कॉक्लियर इम्प्लांट की अनुमति लेना अनिवार्य है। सरकारी अस्पताल को अलग-अलग स्तर पर स्वीकृति की औपचारिकता है। निजी अस्पतालों का मजबूत नेटवर्क है, जहां मरीज रेफर हो जाते हैं।
एक साल में सर्जरी की स्थिति
विक्टोरिया अस्पताल
– 06 इम्प्लांट हुए अभी तक
– 02 बच्चे ऑपरेशन के लिए चिह्नित
मेडिकल अस्पताल
– 16 इम्प्लांट हुए अभी तक
– 10 बच्चे कतार में
प्राइवेट अस्पताल
– 100 के करीब इम्प्लांट हुए
– 50 से अधिक बच्चे चिह्नित
जिम्मेदार बोले
जिला अस्पताल में कॉक्लियर इम्प्लांट किए जा रहे हैं। सरकारी योजना के तहत ऑपरेशन की प्रक्रिया निर्धारित नियमों के तहत की जाती है। जिला अस्पताल को कॉक्लियर इम्प्लांट का आधुनिक केंद्र बनाने का प्रयास है। आने वाले समय में ऑपरेशन और बढ़ेंगे।
डॉ. एमएम अग्रवाल, सीएमएचओ