श्वेतार्क गणेश के स्वरूप में हैं मूर्ति
इस सिद्धपीठ की वैसे तो अनेक विशेषताएं हैं पर यहां स्थापित गणेश प्रतिमा तो अद्भुत ही है। मूर्ति श्वेतार्क गणेश के स्वरूप में हैं। मूर्ति के रूप में बैठे हुए गणेशजी की दक्षिणावर्त सूंड है। श्चेतार्क दक्षिणावर्त सूंड की यह गणेश प्रतिमा बहुत दुर्लभ तो है ही इसका प्रताप भी अद्भुत है। मंदिर में स्थापित गणेशजी के आशीर्वाद की कई गाथाएं कहीं-सुनी जाती हैं। इस अनूठी और सिद्ध गणेश प्रतिमा के यहां स्थापित होने का किस्सा सुनकर तो यह लगता है कि मानो स्वयं गणेशजी यहां आने के लिए लालायित थे। इस गणेशप्रतिमा को दरअसल शहर के सुप्रसिद्ध नरसिंह मंङ्क्षदर में स्थापित करने के लिए लाया गया था। जब बाहर से यह प्रतिमा लाकर यहां खुले खेत में रखी गई तो नरसिंह मंदिर की स्थापना करनेवाले जाट सरकार को गणेशजी ने दर्शन देकर कहा कि मुझे अब यहीं रहने दें, यहां से नहीं हटाएं। तब से ये विनायक प्रतिमा यहीं विराजित है। इस घटना को ढाई सौ साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है और श्रीगणेशजी आज भी यहीं सुखासन में बैठकर अपने भक्तों को सुख-समृद्धि का वरदान दे रहे हैं।
इस सिद्धपीठ की वैसे तो अनेक विशेषताएं हैं पर यहां स्थापित गणेश प्रतिमा तो अद्भुत ही है। मूर्ति श्वेतार्क गणेश के स्वरूप में हैं। मूर्ति के रूप में बैठे हुए गणेशजी की दक्षिणावर्त सूंड है। श्चेतार्क दक्षिणावर्त सूंड की यह गणेश प्रतिमा बहुत दुर्लभ तो है ही इसका प्रताप भी अद्भुत है। मंदिर में स्थापित गणेशजी के आशीर्वाद की कई गाथाएं कहीं-सुनी जाती हैं। इस अनूठी और सिद्ध गणेश प्रतिमा के यहां स्थापित होने का किस्सा सुनकर तो यह लगता है कि मानो स्वयं गणेशजी यहां आने के लिए लालायित थे। इस गणेशप्रतिमा को दरअसल शहर के सुप्रसिद्ध नरसिंह मंङ्क्षदर में स्थापित करने के लिए लाया गया था। जब बाहर से यह प्रतिमा लाकर यहां खुले खेत में रखी गई तो नरसिंह मंदिर की स्थापना करनेवाले जाट सरकार को गणेशजी ने दर्शन देकर कहा कि मुझे अब यहीं रहने दें, यहां से नहीं हटाएं। तब से ये विनायक प्रतिमा यहीं विराजित है। इस घटना को ढाई सौ साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है और श्रीगणेशजी आज भी यहीं सुखासन में बैठकर अपने भक्तों को सुख-समृद्धि का वरदान दे रहे हैं।
दर्जनों लोगों से नहीं हिल सकी मूर्ति
ऐसा नहीं है कि गणेश मूर्ति को यहां से अन्यत्र ले जाने के फिर कोई प्रयास ही नहीं हुए हों। शहर के कई पुराने बाशिंदे बताते हैं कि बाद में भी कई बार इस मूर्ति को यहां से उठाने की कोशिश की गई पर इस काम में कोई भी कामयाब नहीं हो सका। । अनेक बार दर्जनों लोगों ने मिलकर इस मूर्ति को यहां से उठाने की कोशिश की पर मूर्ति टस से मस नहीं हुई। सन १७६३ ईस्वी में बने नरसिंह मंदिर और इससे पूर्व यहां लाई गई इस गणेश प्रतिमा के संबंध में इन तथ्यों का राज्य के गजेटियर में भी उल्लेख किया गया है। बाद में सन १९९७ में कृष्णकुमार पुरोहित ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया। पुरोहित परिवार के सुशांत पुरोहित बताते हैं कि मंदिर का निर्माण भी स्वत: स्फूर्त प्रेरणा से हुआ। बिना किसी चंदे के यह भव्य मंदिर बन गया। सिद्धपीठ में स्थापित पूर्वमुखी गणेशप्रतिमा के दर्शन करने दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। मंदिर के व्यवस्थापक शैलेष पुरोहित बताते हैं कि गणेश पुराण में पूर्वमुखी गणेश प्रतिमा को विशेष फलदायक बताया गया है इसलिए यहां गणेश भक्तों की हरदम भीड़ लगी रहती है।