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एडीजे पद की राह में रोड़ा बनी खुद की संतान, अजब है माजरा

locationजबलपुरPublished: Apr 12, 2018 08:32:55 pm

Submitted by:

Premshankar Tiwari

नहीं मिल पाया महत्वपूर्ण पद, मप्र हाइकोर्ट ने कहा – मप्र उच्च न्यायिक सेवा पर भी लागू होते हैं सिविल सेवा शर्तों के नियम

latest decision of mp high court

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जबलपुर। उन्होंने एडीजे की परीक्षा के लिए जी तोड़ मेहनत की…। सफलता भी उनके हाथ आयी, लेकिन खुद के बच्चे और नियम की बाध्यता उनके पद की राह में रोड़ा बन गई। दरअसल तीन बच्चों की वजह से उन्हें महत्वपूर्ण पद से वंचित होना पड़ा। मप्र हाइकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि दो से अधिक संतान वाले एडीजे पद पर नियुक्त नहीं हो सकते। चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता की अध्यक्षता वाली युगलपीठ ने कहा कि महज परीक्षा और साक्षात्कार में चयनित होने से कोई नियुक्तिका हकदार नहीं हो जाता, यदि उसने नियुक्तिके लिए जरूरी विज्ञापित शर्तें पूरी न की हों। इसी के साथ कोर्ट ने मप्र उच्च न्यायिक सेवा नियम को दी गई चुनौती खारिज कर दी है।

यह है मामला
इंदौर, लसूडिय़ा निवासी अधिवक्ता भाग्यश्री सईद ने याचिका दायर की थी। कहा गया था कि नौ मार्च 2017 को मप्र उच्च न्यायिक सेवा डीजे (एंट्री लेवल) के 42 पदों के लिए विज्ञापन दिए गए थे। याचिकाकर्ता ने इसके लिए परीक्षा दी। उन्हें साक्षात्कार के लिए बुलाया गया, जिसमें वह सफल रहीं। इसके बावजूद उनका नाम चयनित उम्मीदवारों की सूची में प्रकाशित नहीं किया गया। इसकी वजह बताई गई कि उन्होंने परीक्षा के आवेदन पत्र व दी गई व्यक्तिगत सूचना में तीन संतानें होने का जिक्र किया था। इसे मप्र सिविल सेवा (शर्तें) नियम 1961 के प्रावधानों का उल्लंघन बताया गया।

यह था तर्क
याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि सिविल सेवा नियम 1961 हाइकोर्ट की सहमति से नहीं बनाए गए। इसलिए ये नियम मप्र उच्च न्यायिक सेवा (शर्तें) नियम 1994 पर लागू नहीं होता। मप्र उच्च न्यायिक सेवा नियम 1994 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। जबकि, कोर्ट ने कहा कि उक्तपदों के विज्ञापन में ही यह स्पष्ट कर दिया गया था।

कोर्ट ने यह कहा
कोर्ट ने इस तर्क को दरकिनार कर दिया कि मप्र सिविल सेवा नियम 1961 को हाइकोर्ट की सहमति नहीं है। कोर्ट ने याचिका निरस्त करते हुए कहा कि न्यायिक सेवा पर भी ये प्रावधान इसलिए बाध्यकारी हैं, क्योंकि हाइकोर्ट ने विज्ञापन की शर्तों में यह उल्लेख किया है। इसलिए याचिकाकर्ता की उक्तपदों पर नियुक्ति के लिए उम्मीदवारी विचारणीय नहीं है। याचिकाकर्ता का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल खरे व अधिवक्ता एचएस छावड़ा ने रखा। राज्य सरकार की ओर से उपमहाधिवक्ता पुष्पेंद्र यादव उपस्थित हुए।

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