दबाव बढऩे से मर्ज
विशेषज्ञों के अनुसार आंखों के अंदर एक तरल पदार्थ होता है। इस तरल पदार्थ के बनने और बाहर निकलने की प्रक्रिया में जब कभी दिक्कत आती है तो आंखों में दबाव बढ़ जाता है। आंख की नसों में खून का बहाव कम हो जाता है। धीरे-धीरे ये नसें सूखने लगती है। नजर और विजिबिलिटी कम होती चली जाती है। इसके शुरुआती लक्षणों को जानकारी की कमी या अनदेखी पर पीडि़त को कुछ समय बाद पूरी तरह आंख से दिखना बंद हो जाता है।
उपचार में देर से समस्या
नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज में नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. परवेज अहमद सिद्दकी के अनुसार कांचियाबिंद को लेकर लोग जागरुक नहीं है। उपचार में देर होने से ही समस्या गंभीर बन रही है। समय पर जांच होने और मर्ज पकड़ में आने पर आवश्यक उपचार और दवा के जरिए नस को सूखने से रोका जा सकता है। नजर को कमजोर होने से बचाया जा सकता है।
इतने नाम से बीमारी की पहचान
– कांचियाबिंद
– काला मोतिया
– ग्लूकोमा
– कांचबिंदु
जबलपुर में स्थिति:
– 01 हजार से ज्यादा मरीज औसतन प्रतिदिन आई ओपीडी में आते है
– 30 से अधिक मरीज, जांच में मिल रहे है कांचियाबिंद से पीडि़त मिल रहे
इनका ध्यान रखकर बीमारी से बच सकते है-
– बल्ब के चारों ओर इंद्रधनुषी रंग दिखाई देने, लगातार आंसू निकलने, आंख लाल, सिरदर्द होने पर तुरंत जांच कराएं।
– डायबिटीज है। बीपी की शिकायत है तो उनमें दूसरे के मुकाबले ग्लूकोमा जल्दी होने का अंदेशा होता है।
– 40 की आयु के बाद आंख की नियमित जांच कराना चाहिए। आमतौर समस्या नजरअंदाज करने से परेशानी बढ़ रही है।
– अधिक उम्र में लोग यह मानते है कि मोतिबिंद के कारण नजर कमजोर हो रही है, यह ग्लूकोमा भी हो सकता है।
– एलर्जी, अस्थमा, ऑर्थराइटिस के ऐसे मरीज जो लंबे समय तक स्टेरॉयड ले रहे है, उन्हें भी बीमार का अंदेशा होता है।
– ग्लूकोमा बच्चों में भी हो सकता है। नवजात की आंख और कार्नियां बड़ी हो जाती है।