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Environmentचल उड़ जा रे पंछी अब ये देश हुआ बेगाना

locationजबलपुरPublished: Nov 21, 2019 08:35:46 pm

Submitted by:

shyam bihari

जबलपुर में छीना जा रहा है परिंदों के रहने लायक माहौल
Living environment of birds is being snatched in Jabalpur

Pokhran became Rare species roost of birds in jaisalmer

परमाणुनगरी बनी दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों का बसेरा,नजर आए विंगड टर्न व ऑस्प्रे पक्षी

जबलपुर। चल उड़ जा रहे पंछी अब ये देश हुआ बेगाना… फिल्मी गाने के ये बोल वैसे तो दार्शनिक भाव वाला है। लेकिन, इस समय यह पंक्तियां जबलपुर के परिंदों के लिए सटीक बैठ रही हैं। राजस्थान की झील में पक्षियों की कब्रगाह बनने की खबर से इस समय पूरा देश सन्न रह गया है। हालांकि, वहां इंसानी दखल सीधे तौर पर सामने नहीं आ रहा है। लेकिन, जबलपुर में पक्षियों के रहने लायक सदियों पुराने माहौल को लोग ही बिगाड़ रहे हैं। यहां पेड़ काटकर घोंसले नष्ट किए जा रहे हैं। तालाबों को पाटकर पक्षियों के आहार पर डाका डाला रहा है। हालत यह है कि अब जबलपुर में प्रवाही पक्षियों का आना कम हुआ है। यहां के रहवासी पक्षी भी दूर-दराज जा रहे हैं।
पक्षी प्रेमी की पहचान
जबलपुर की पहचान प्रकृति और पक्षी प्रेमी के रूप में रही है। इसी का नतीजा है कि यहां पर देशी-विदेशी लगभग 300 प्रजातियों के पक्षी घरौंदा बनाते हैं। महीनों यहां पर डेरा डाले रहते हैं। सरोवरों और नर्मदा की गोद में अठखेलियां करते हैं। हालांकि अब इसमें बदलाव आ रहा है। कुछ बेरहम लोग पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलाकर परिंदों की जान के दुश्मन बन गए हैं। इससे बाहरी पक्षी आने में अब ठिठकने लगे हैं।
यहां है डेरा
कुंडम- पेंटेंड फेंकोलिन, ग्रे फ्रेंकोलिन, रेन क्वाइल, ग्रे नाइटजार, ग्रीन रेड पैरट
जमतरा गांव- ब्लू ब्रेस्टिड क्वाइल, जंगली बुश क्वाइल, बरीड बटन क्वाइल।
परियट- रेड स्पर फाल, रेड जंगल फाल, इंडियन पीफाल।
डुमना- इंडियन पीफाल, ग्रेलेग गोसी, व्हाइट नेप्ड वुडपेकर, लेसर व्हाइट थ्राट, सिकीज लार्क, कॉमन रोजफिंच।
खंदारी- लीसर विसलिंग टेल, रुडी शेलडक, कॉमन पोचर्ड, नार्दन पिनटेल, वुड सेंडपिपर।
बरगी डेम- ग्रेट थिकनी, लिटिल रिंग्ड प्लोवर, यलो वेटेड लेपविंग, रेड वेटेड लेपविंग, ब्लेक हेडेड गुल, रिवर टर्न।
नर्मदा रिवर- पिड एवोसेट, रिवर लेपविंग, किंग फिशर, ब्लू रॉक, ग्रीन अवेडवेट।
संग्राम सागर- डक, गाडवाल।
शहपुरा रोड- यूनेसियान आउल, ब्राउन फिश आउल, पीकॉक।
खास थी पहचान
जबलपुर शहर में कभी 110 प्रकार के पक्षियों को देखा जाता था, लेकिन आज हालात यह हो गए हैं कि अब गिनती के पक्षी ही शहर में नजर आते हैं। यदि हम अब भी नहीं जागे तो आने वाली पीढ़ी को किताबों में ही परिंदों की कहानी मिलेगी। पक्षियों की प्रजातियां खत्म होने की एक बड़ी वजह वृक्षों की अंधाधुंध कटाई के चलते पक्षियों का आशियाना छिन जाना है। वहीं दूसरी एक बड़ी वजह जिन तालाबों में पक्षियों को खाने के लिए कीड़े मकोड़े, मछलियां एवं पानी के किनारे तलहटी में कीड़े मिलते थे अब तालाबों में सिंगाड़े की खेती शुरू किया जाना है। खेती के दौरान सिंगाडों के लिए रसायन छिड़का जाना है। कुछ रसायन पानी और तालाब के किनारे पडऩे के कारण जलीय जंतु भी नष्ट हो जा रहे हैं। ऐसे में पक्षियों के लिए न तो मछलियां हैं न ही जलीय जंतु। भोजन की संभावनाएं घटने से पक्षियों ने आना ही बंद कर दिया। मिट्टी में अंधाधुंध रसायानों के प्रयोग से मिट्टी भी जहरीली हो गई है।

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