जबलपुरPublished: Apr 13, 2019 07:26:00 pm
shyam bihari
जबलपुर में स्वाभाविक मुद्दे हैं नहीं, स्थानीय मुद्दों की तरफ किसी का ध्यान नहीं
जबलपुर। कागजों पर तो जबलपुर लोकसभा सीट को वीआइपी कहा जा रहा है। यहां प्रत्याशियों के नाम सामने आ गए हैं। नामांकन भी कर दिए गए हैं। नाम वापसी की तारीख भी समाप्त हो गई है। लेकिन, अभी तक एक भी घटनाक्रम ऐसा नहीं दिखा कि कोई कह सके कि यहां चुनावी माहौल है। वोटिंग में अब एक पखवाड़े का ही समय बचा है। लेकिन, प्रत्याशी अभी खाटी नेता के रूप में नजर नहीं आए। बड़े नेताजी की तरफ से सरगर्मी नहीं दिखी, तो उनके साथ वाले भी बेफिक्री की मुद्रा में हैं। वे कहते हैं कि भइया ने अभी कुछ कहा ही नहीं है। भइया का इशारा होते ही सब एक साथ चुनाव प्रचार के मैदान में टूट पड़ेंगे।
राजनीतिक संकट की स्थिति
इस बार नेताओं के सामने कई तरह के राजनीतिक संकट हैं। राष्ट्रीय मुद्दे को अभी यहां स्थानीय मतदाताओं से जोडऩे की कोशिश नहीं की जा रही। स्थानीय मुद्दे तलाशे नहीं जा रहे हैं। स्वाभाविक मुद्दे सामने आ नहीं आ रहे हैं। यह भी कह सकते हैं कि स्थानीय रूप से बिखरे मुद्दों की तरफ किसी का ध्यान जा ही नहीं रहा है। यह वही जिला है, जहां विधानसभा चुनाव के दौरान स्थानीय मुद्दे क्रिएट किए जा रहे थे। नजारा ऐसा था कि कोई स्थानीय रसूख वाला व्यक्ति बीमार पड़ जाए, तब भी नेताजी उसकी हाल-चाल जानने पहुंच जाते थे। गांवों में कोई बीमार पड़ता था, तो उसे अस्पताल पहुंचाने की होड़ लग जाती थी। लेकिन, लोकसभा चुनाव में ऐसा नहीं दिख रहा।
रूह कंपा देने वाली हत्या की तरफ ध्यान नहीं
जबलपुर लोकसभा क्षेत्र के एक गांव में एक बालक की रूह कंपा देने वाले अंदाज में हत्या की गई। इस हत्याकांड से पूरे क्षेत्र में सनसनी और मातम का माहौल है। लेकिन, पुलिस चार दिन में हत्या के आरोपियों का सुराग तक नहीं तलाश पाई। हद तो यह है कि अभी तक हत्या का मेन मोटिव तक सामने नहीं आया। पुलिस किस अंदाज में काम कर रही है, इसका अंदाजा इस हत्याकांड के जांच-पड़ताल से लगाया जा सकता है। पुलिस पर दबाव बनाने के लिए भी किसी तरह की कोशिश नहीं दिख रही है। यह भी रहस्य की बात है कि चुनावी माहौल होने के बाद भी यहां किसी दल का सामान्य स्तर का नेता मौके पर नहीं पहुंचा। यह अच्छी बात है कि ऐसे मौकों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। लेकिन, जनप्रतिनिधियों को क्षेत्र के लोगों के सुख-दुख में शामिल होने का रिवाज तो है ही। वोट की कीमत का अंदाजा इससे भी तो लगाया ही जाता है।