हर तरफ उत्सव
रथ यात्रा के लिए मंदिरों में सुबह से ही तैयारियों का दौर शुरू हो गया था। भगवान जगन्नाथ के रथों व झांकियों को पुरी की तर्ज पर सजाया गया। मंदिरों में भजन-कीर्तन हुए और दोपहर करीब 3.30 बजे के बाद यात्रा के आयोजन का क्रम शुरू हुआ। जैसे ही रथ गंतव्य के लिए रवाना हुए हर तरफ उत्सव का नजार बन गया। भगवान जगन्नाथ के जयघोष गूंज उठे। जगत के नाथ का प्रसाद रुपी भात पाने के लिए हजारों हाथ पसर गए…। हरिनाम संकीर्तन ने माहौल में सम्मोहन घोल दिया। भक्त झूम उठे। माहौल ऐसा बना कि महिलाओं ने भी भगवान का रथ खींचकर पुण्य अर्जित किया।
फुहारे पर अनूठा संगम
अधिकांश रथ यात्राएं मिलौनीगंज से बड़ा फुहारा और मालवीय चौक के बीच निकाली जाती हैं। इनका संगम बड़ा फुहारा के समीप होता है। यह संगम रविवार को भी हुआ। हर समिति अपने झांकी के प्रदर्शन के लिए बेताब थी। नृत्य-गीतों और भक्तों के मेले के बीच यह संगम करीब एक घंटे तक बना रहा। इसमें सैकड़ों की संख्या में भक्त शामिल हुए।
बड़ा फुहारा में श्रद्धा और उल्लास के संगम के बीच संतों का समागम हुआ। जगद्गुरु डॉ. स्वामी श्यामदेवाचार्य, स्वामी गिरीशानंद सरस्वती, स्वामी मुकुंददास महाराज, स्वामी नरसिंहदास समेत अन्य संतों ने रथ यात्रा के मार्ग पर सोने की झाड़ू से सफाई की परम्परा निभायी। रथ यात्रा में पं. वासुदेव शास्त्री, बाबू विश्वमोहन, सुधीर अग्रवाल, शरद काबरा, श्याम साहनी, विंध्येश भापकर, दीपक पचौरी, प्रवेश खेड़ा, सत्यप्रकाश सराफ, मनमोहन दुबे, पप्पन मिश्र, राजेन्द साहू, शिवशंकर पटेल, श्रीकांत साहू, प्रकाश साहू, राम कृष्ण विश्वकर्मा, जगदीश साहू, लीला बाई चौरसिया, जानकी दुबे समेत अनेक श्रद्धालु शामिल रहे।
ऐसी मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा व अग्रज बलराम के साथ मौसी के घर जाते हैं। संस्कारधानी में भी यह परम्परा निभायी जाएगी। साहू समाज की रथ यात्रा के समापन पर भगवान बड़ी खेरमाई मंदिर में विश्राम करेंगे। जगदीश मंदिर गढ़ाफाटक की शोभायात्रा का समापन गोविंदगंज रामलीला मैदान परिसर में हुआ। बंगाली क्लब व जगदीश मंदिर हनुमानताल समेत अन्य मंदिरों और समितियां की रथ यात्रा तय शुदा स्थानों पर समाप्त हुई। इन स्थानों को भगवान की मौसी के घर की मान्यता दी गई है। यहां सात दिन तक भगवान मेहमानी करेंगे। इसके बाद उनकी वापसी शोभायात्रा निकाली जाएगी।