देहदान की कमी से स्टडी और रिसर्च में आ रहीं मुश्किलें, मेडिकल स्टूडेंट के एक सत्र के लिए ही बची हैं डेड बॉडी
पहले अस्पताल से मिलती थी बॉडी
मेडिकल कॉलेज में गरीब मरीजों के परिजन से बॉडी डोनेशन करने के लिए संवाद की पहल में कमी आने से डेड बॉडी कम हो रही है। कुछ वर्षों पहले हर साल मेडिकल अस्पताल से ही 10-15 बॉडी डोनेट होती थी। न्यूरो सर्जरी विभाग के डॉ. विजय परिहार के अनुसार आवश्यकता पडऩे पर दूसरे मेडिकल कॉलेजों में भी डेड बॉडी भेजी जाती थी।
हॉयर सर्जरी की ट्रेनिंग पर भी संकट
न्यूरो सर्जरी, कॉर्डियक सर्जरी, ईएनटी एवं प्लॉस्टिक सर्जरी की हॉयर ट्रेनिंग में डेड बॉडी की आवश्यकता होती है। इंडोस्कोपिक सर्जरी की ट्रेनिंग के बाद उसी बॉडी पर एमबीबीएस स्टूडेंट डिस्केशन कर सकते हैं। बॉडी के वर्चुअल सेम्युलर मॉडल पर अंग दिखाई देते हैं लेकिन मॉडल में बारीक अंगों को उपकरणों से पकडऩे का अनुभव नहीं हो पाता है। साल में 2 बार होने वाली न्यूरो इंडोस्कोपिक फेलोशिप में देश-विदेश के डॉक्टर ट्रेनिंग लेने आते हैं। इस टे्रनिंग पर ही संकट के बादल मंडराने लगे हैं।
न्यूरो सर्जरी विभाग के एचओडी डॉ. वायआर यादव के अनुसार, मेडिकल एजुकेशन में डेड बॉडी कम पड़ रही है। देहदान के बिना मेडिकल रिसर्च संभव नहीं है। अगर आर्थिक रूप से कमजोर परिवार बॉडी डोनेट करने के लिए आर्थिक सहयोग स्वीकार करे तो न्यूरो सर्जरी विभाग 5000 रुपए नकद व अन्य व्यय का भुगतान करेगा। इसके साथ बॉडी डोनेशन करने वाले लोगों की फोटो एनॉटामी विभाग की गैलरी में लगाई जाएगी। एचओडी डॉ. पीसी जैन ने बताया, विभिन्न संगठनों के माध्यम से देहदान को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किया जा रहा है।
मेडिकल कॉलेज में पीजी स्टूडेंट को निर्देश दिए गए हैं कि बॉडी डोनेशन के लिए लोगों को प्रेरित करें। बॉडी डोनेशन को बढ़ावा देने के लिए कुछ नए प्रयास किए जाएंगे।
– डॉ. पीके कसार, डीन, मेडिकल कॉलेज